हिंदी में प्रेरक कहानियां | Moral Stories for Kids in Hindi

प्रेरक कहानी (Moral Story) हमारे जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ऐसा कौन है, जिसने अपने बचपन में ऐसी कहानी नहीं सुनी होगी, जिसमें कोई ना कोई शिक्षा हमारे लिये नहीं होती है। यह कहानी इतनी शक्तिशाली होती हैं। की ये आपकी कल्पनाओं को साकार रूप देती हैं। तो दोस्तों आज के इस पोस्ट में हम आपके लिए बेहतरीन प्रेरक कहानियां (Moral Stories for Kids in Hindi) लेकर आये हैं, जो आप अपने बच्चों को भी पढकर सुना सकते हैं। जो पूरी तरह से शिक्षाप्रद हैं। जिनको आपको जरूर पढ़ना चाहिए।

“भ्रम और सत्य” हिंदी कहानी (Moral Story in Hindi)

बहुत समय पहले की बात है, एक छोटे से गांव में एक गरीब लड़का नामकरण रहता था। वह बहुत ही उत्साही और समय के महत्व को समझने वाला था। वह रोज़ाना सुबह जल्दी उठता और अपने माता-पिता की सहायता करके खेत में काम करता।

एक दिन, नामकरण को सुबह के समय अपने खेत में जाना होता है। वह बहुत बड़ी खेत में काम करता है, जो कि उसके घर से काफी दूर होती है। रास्ते में जाते समय, वह अपने दोस्त विक्रम से मिलता है, जो कि भ्रमी होता है।

विक्रम बहुत ही मासूम और जिज्ञासु होता है, इसलिए वह नामकरण से अनेक सवाल पूछना शुरू कर देता है। वह पूछता है, “नामकरण, तू हमेशा इतना उत्साही कैसे रहता है? तू रोज़ाना इतनी मेहनत करके खेत में काम करता है, जबकि बाकी सभी लोग आराम कर रहे होते हैं।”

नामकरण मुस्कराते हुए कहता है, “विक्रम, मेरे पास एक गहरा अर्थ है और वह है सत्य का अनुसरण करना। मैं सच्चाई को अपना मार्गदर्शन मानता हूँ और सत्य के आधार पर ही अपनी जिंदगी जीता हूँ। मुझे यह जानकर खुशी होती है कि मैं अपने माता-पिता की सहायता कर सकता हूँ और खुद को स्वावलंबी बना सकता हूँ।”

 

विक्रम हैरान हो जाता है और पूछता है, “पर सत्य क्या होता है, और कैसे हम उसे पहचान सकते हैं?”

नामकरण हंसते हुए कहता है, “विक्रम, देखो जब तुम लोगों के सामने बोलते हो तो क्या तुम कभी झूठ बोलते हो?”

विक्रम सोचता है और बोलता है, “नहीं, मैं कभी झूठ नहीं बोलता।”

नामकरण बिना रुके कहता है, “ठीक है, अब यह सोचो कि जब तुम अपने माता-पिता के सामने होते हो, तो क्या तुम उनकी सहायता करते हो?”

विक्रम ध्यान देता है और उत्साह से बोलता है, “हां, मैं हमेशा उनकी सहायता करता हूँ जब वे मेरी जरूरत पूछते हैं।”

नामकरण आगे बढ़ते हैं और कहते हैं, “यही सत्य है, विक्रम। सत्य वही होता है जो हम अपनी जिंदगी में प्रदर्शित करते हैं। सत्य हमारी आदत बन जाती है और हमें उसे पहचानने की क्षमता देती है। यदि हम सच्चाई का अनुसरण करेंगे, तो हमेशा सफलता की ओर आगे बढ़ेंगे।”

विक्रम की आँखों में चमक देखकर नामकरण कहता है, “विक्रम, अगर तू चाहे तो तू भी सच्चाई के मार्ग पर चल सकता है। अपने सपनों को पूरा करने के लिए तू सच्चाई के आधार पर जीने का निर्णय ले सकता है।”

विक्रम की आँखों में नई ऊर्जा की किरण देखकर, वह धन्यवाद करते हुए कहता है, “धन्यवाद, नामकरण। मैं सच्चाई के मार्ग पर चलूंगा और अपने सपनों को पूरा करने का प्रयास करूंगा।”

इस तरह, नामकरण और विक्रम दोस्त बन जाते हैं और अपने आप को एक दूसरे के लिए प्रेरित करते हैं। विक्रम उत्साहित होकर अपने खेत में जाता है और नामकरण अपने काम पर ध्यान देता है।

इस कहानी से हमें यह सिख मिलती है कि सत्य हमारी आदत बनना चाहिए। हमें सच्चाई के मार्ग पर चलने की क्षमता होनी चाहिए और हमेशा सत्य के प्रति वचनबद्ध रहना चाहिए। सत्य और समय का सम्मान करना हमेशा हमें सफलता की ओर ले जाता है।

“सच्ची खुशी” हिंदी कहानी (Moral Story in Hindi)

एक समय की बात है, एक गांव में एक गरीब परिवार रहता था। इस परिवार में एक बुढ़िया माँ और उसके दो छोटे बच्चे थे। वे सभी बहुत मेहनती थे और दिन-रात मेहनत करके जीवन यापन करते थे। परंतु उन्हें उस गांव में कोई मदद नहीं मिलती थी और उन्हें अपने रोजगार से बहुत ही कम आय प्राप्त होती थी।

एक दिन, बुढ़िया माँ के जीवन में अचानक बदलाव हो गया। वह एक अमीर राजकुमार से मिली, जो उन्हें अपने महल में नौकरी के लिए रखने के लिए तत्पर था। बुढ़िया माँ खुशी खुशी उसे नौकरी स्वीकार कर ली। उसे बड़ा खुशी महसूस हो रहा था कि अब उसकी आर्थिक स्थिति सुधार जाएगी और उसके बच्चों का भविष्य उज्ज्वल होगा।

 

राजकुमार ने उन्हें अपने महल में बहुत अच्छी तरह से रखा। उन्हें सभी सुविधाएँ उपलब्ध करवाई गईं और उन्हें हर तरह की सेवाएं प्रदान की गईं। लेकिन बुढ़िया माँ के मन में हमेशा एक सवाल रहा – क्या वह सच में खुश हैं? क्या ये सब धन और सुविधाएं ही जीवन का एकमात्र लक्ष्य हो सकती हैं?

एक दिन, उन्होंने राजकुमार से पूछा, “मुझे अपने गांव जाना है। क्या मैं आपकी अनुमति पा सकती हूँ?” राजकुमार ने थोड़ी देर सोचने के बाद कहा, “ठीक है, तुम जा सकती हो, लेकिन सुनो, मेरे वापस आने का समय सबसे पहले सूचित करना।”

बुढ़िया माँ गांव गई और उसे खुद को अपने पुराने जीवन में वापस पाने का अनुभव हुआ। गांव वापस आकर उन्होंने देखा कि वहां की जीवनशैली में बहुत सरलता और समृद्धि है। लोग खुश और सामर्थ्यशाली थे और अपने छोटे-मोटे खुशियों में सुखी दिख रहे थे। यह बुढ़िया माँ को समझ में नहीं आया कि वह अपने गरीब जीवन को छोड़कर कितनी विपरीत स्थिति में फंस गई हैं।

थोड़ी देर गांव में बिताने के बाद, उसे राजकुमार को वापस जाना होता था। उसने उसे एक पत्र लिखा, “मैं अभी तुरंत वापस आ रही हूँ। मुझे यहां कुछ नहीं मिला, बल्कि सिर्फ यह देखने को मिला कि वह सच में खुशियों और सफलताओं का सच्चा अर्थ गांव में है।”

बुढ़िया माँ वापस महल आई और उसने राजकुमार को पत्र सौंप दिया। राजकुमार ने पत्र पढ़ा और बहुत ही हैरान हो गए। उन्होंने बुढ़िया माँ को अपनी कमरे में बुलाया और पूछा, “तुम्हें यहां रहने के बाद भी गांव में सुखी और सम्पन्न महसूस क्यों हो रहा है?”

बुढ़िया माँ ने मुस्कराते हुए कहा, “आपके महल में रहते हुए मुझे यह अनुभव हुआ कि धन और सुविधाओं से ज्यादा महत्वपूर्ण है आत्मसंतुष्टि और सच्ची खुशी। गांव में लोग वैसे ही खुश हैं जैसे कि वे हैं, वहां की सरलता और समृद्धि मेरे दिल को छू गई हैं। यह शिक्षा मुझे यह सिखाई कि सच्ची खुशी और सम्पन्नता मन में होती है, वहां नहीं।”

राजकुमार ने बुढ़िया माँ की बात सुनकर गहराई से सोची और उन्हें समझ गए कि वास्तव में धन और सुविधाएं जीवन का महत्वपूर्ण अंग नहीं होती हैं। उन्होंने उस दिन से अपने जीवन को एक नई दिशा दी। वे अपनी आर्थिक सहायता करने के लिए गांव में निवासियों की मदद करने लगे और अपनी सबसे बड़ी खुशी उनके चेहरों पर मुस्कान देखने में मिली।

इस कहानी से हमें यह समझ मिलती है कि धन और सुविधाएं महत्वपूर्ण हैं, लेकिन सच्ची खुशी और समृद्धि मन में ही पाई जा सकती है। इसलिए, हमें अपने जीवन को सामर्थ्य और सफलता के साथ ही आत्मसंतुष्टि और खुशी से भरने की आवश्यकता है। यदि हम खुश और संतुष्ट रहेंगे, तो हमें जीवन में सफलता और सम्पन्नता की सच्ची प्राप्ति होगी।

“क्षमा” हिंदी कहानी (Moral Story in Hindi)

एक बार की बात है, एक छोटे से गाँव में, रमेश नाम का एक बुद्धिमान बूढ़ा व्यक्ति रहता था। वह जीवन की गहरी समझ और अपनी कहानियों के माध्यम से मूल्यवान शिक्षा देने की क्षमता के लिए जाने जाते थे। दूर-दूर से लोग उनका मार्गदर्शन और ज्ञान प्राप्त करने आते थे।

एक दिन, अर्जुन नाम का एक युवक रमेश के पास मदद मांगने आया। अर्जुन एक गुस्सैल स्वभाव का व्यक्ति था जो अक्सर खुद को दूसरों के साथ संघर्ष और झगड़ों में पाता था। वह अपने तौर-तरीके बदलना चाहता था और सीखना चाहता था कि अधिक शांतिपूर्ण और सौहार्दपूर्ण जीवन कैसे जिया जाए।

रमेश ने अर्जुन की ओर मुस्कुराते हुए कहा, “मैं तुम्हें एक कहानी सुनाऊंगा जो तुम्हें धैर्य का महत्व और क्षमा की शक्ति सिखाएगी।” जैसे ही रमेश ने अपनी कहानी शुरू की, अर्जुन ध्यान से बैठा रहा।

“बहुत समय पहले, हरे-भरे खेतों के बीच एक गाँव बसा हुआ था। इस गाँव में, दो किसान रहते थे, राम और श्याम। वे पड़ोसी और अच्छे दोस्त थे। वे दोनों मेहनती थे और अपनी खेती के प्रति समर्पित थे।

एक वर्ष, बारिश कम हुई और राम और श्याम दोनों की फसलें प्रभावित हुईं। हालाँकि, श्याम के खेत में थोड़ी अधिक बारिश होने के कारण उनकी फसल तो बच गई, जबकि राम की फसल सूख गई।

राम, जो अपने गुस्सैल स्वभाव के लिए जाना जाता था, श्याम की सफलता से ईर्ष्या करने लगा। वह अपने गुस्से पर काबू नहीं रख सका और श्याम पर उसकी बारिश चुराने का आरोप लगाने लगा। उसने श्याम का सामना किया और उस पर उसकी फसल को बर्बाद करने के लिए काले जादू का उपयोग करने का आरोप लगाया।

राम के आरोपों से श्याम हैरान रह गया। उन्होंने यह समझाने की कोशिश की कि यह सिर्फ भाग्य की बात है और राम के दुर्भाग्य से उनका कोई लेना-देना नहीं है। लेकिन राम सुनने को तैयार नहीं थे. वह अपने हृदय में कड़वाहट और आक्रोश रखता था।

जैसे-जैसे समय बीतता गया, दोनों पड़ोसियों के बीच कड़वाहट बढ़ती गई। राम अक्सर गाँव में श्याम के बारे में बुरा बोलता था, जिससे उसकी प्रतिष्ठा धूमिल होती थी। ग्रामीणों ने बीच-बचाव करने और दोनों के बीच सुलह कराने की कोशिश की, लेकिन राम गुस्से में इतना डूब गया था कि उसने तर्क सुनने की हिम्मत नहीं की।

एक दिन, एक बुद्धिमान ऋषि गाँव में आये। ग्रामीणों ने उनसे संपर्क किया और राम और श्याम के बीच चल रहे झगड़े को सुलझाने के लिए उनका मार्गदर्शन मांगा। ऋषि मदद करने के लिए सहमत हुए और दोनों किसानों को एक बैठक के लिए बुलाया।

जब राम और श्याम बैठक में पहुंचे, तो वे ऋषि को एक पेड़ के नीचे अपने सामने एक छोटा सा बक्सा रखे हुए बैठे देखकर आश्चर्यचकित रह गए। ऋषि ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘मेरे पास एक समाधान है जो आपको मतभेदों को दूर करने और सद्भाव बहाल करने में मदद करेगा।’

जैसे ही ग्रामीण और दो किसान ऋषि के आसपास एकत्र हुए, वातावरण में उत्सुकता भर गई।

ऋषि ने बक्सा खोला, उसमें से दो छोटी गुड़ियाँ निकलीं। उन्होंने प्रत्येक किसान को एक गुड़िया सौंपी और उन्हें निर्देश दिया कि वे गुड़िया को अपने हाथों में पकड़ें और ये शब्द दोहराएं, ‘मैं तुम्हें माफ करता हूं।’

राम और श्याम दोनों ने ऋषि के निर्देशों का पालन किया, गुड़िया को कसकर पकड़ लिया और फुसफुसाए, ‘मैंने तुम्हें माफ कर दिया।’ जैसे ही उन्होंने ऐसा किया, एक अजीब बात घटी। गुड़ियाएँ चमकने लगीं और राम और श्याम के दिलों में एक गर्म, शांतिपूर्ण एहसास फैल गया। वे महसूस कर सकते थे कि उनका क्रोध और नाराजगी दूर हो रही है।

जब उन्हें अपने झगड़े की व्यर्थता का एहसास हुआ तो उनकी आँखों में आँसू भर आये। उन्होंने एक दूसरे को गले लगाया और माफ़ी मांगी।

उस दिन के बाद से, राम और श्याम न केवल अच्छे दोस्त बन गए बल्कि अपने खेती के प्रयासों में भागीदार भी बन गए। उन्होंने एक-दूसरे को आगे बढ़ने में मदद करते हुए अपना ज्ञान, कौशल और संसाधन साझा किए।

उनके मेल-मिलाप की बात पूरे गाँव में फैल गई, और उनकी क्षमा की कहानी एक किंवदंती बन गई, जिसने सभी को क्षमा की शक्ति और क्रोध और आक्रोश को दूर करने के महत्व की याद दिला दी।

कहानी से बहुत प्रभावित हुए अर्जुन ने इतना मूल्यवान सबक सिखाने के लिए रमेश को धन्यवाद दिया। उन्होंने अधिक धैर्यवान और क्षमाशील व्यक्ति बनने का प्रयास करते हुए इसे अपने जीवन में लागू करने का वादा किया।

रमेश ने मुस्कुराते हुए कहा, “याद रखो अर्जुन, क्षमा कमजोरी की नहीं बल्कि ताकत की निशानी है। इसमें रिश्तों को ठीक करने और हमारे दिलों में शांति लाने की शक्ति है।”

अर्जुन ने नए दृढ़ संकल्प के साथ, राम और श्याम की कहानी को अपने दिल में लेकर, आत्म-परिवर्तन की यात्रा पर निकलने के लिए तैयार होकर, रमेश का निवास छोड़ दिया।

और इसलिए, गांव ने आने वाली पीढ़ियों के लिए कहानी की सीख को संजोना जारी रखा, क्षमा के ज्ञान और शिकायतों को दूर करने के महत्व को आगे बढ़ाया।”

“सच्ची खुशी” हिंदी कहानी (Moral Story in Hindi)

एक समय की बात है, एक गांव में एक गरीब लड़का नामकरण रहता था। वह अपने माता-पिता के साथ छोटे से घर में रहता था और उनके पास केवल दो बकरे ही थे। लड़का बहुत मेहनती और सामर्थ्यशाली था, लेकिन वह बहुत ही आलसी था। उसे कोई काम करने की इच्छा नहीं थी और उसे यह सोचकर खुशी होती थी कि उसके पास दो बकरे हैं जो उसे खाने के लिए पूरी तरह से काफी थे।

एक दिन, उसे एक विचार आया कि क्या वह अगले साल एक बड़ी ईद पर दो बड़े और मोटे बकरे नहीं खरीद सकता है। यह सोचते ही उसे अपनी यह सोच मंदबुद्धि लड़के से बचना चाहिए था, लेकिन उसे यह महसूस नहीं होता था। उसे सिर्फ अपनी ईद की खुशी देखने की आस्था थी।

एक दिन, उसके गांव में एक सद्गुरु आया। वह सद्गुरु बहुत ज्ञानी और दयालु था और उसकी वाणी का आदर्श वहीं रहता था। लड़का ने उसे देखा और उसके पास जाकर अपनी समस्या सुनाई।

सद्गुरु ने मुस्कान के साथ कहा, “बच्चा, तेरी यह इच्छा ठीक है, लेकिन एक बड़ा और मोटा बकरा खरीदने के लिए तू क्या कर सकता है?”

लड़का उलझा हुआ महसूस करने लगा, लेकिन फिर उसके मन में एक विचार आया। उसने सद्गुरु से कहा, “महाराज, मैं यहां बकरों की देखभाल कर सकता हूँ। मैं उन्हें खाना खिला सकता हूँ, उनकी देखभाल कर सकता हूँ और उनके साथ समय बिता सकता हूँ। इससे मेरा समय बिताना भी अच्छा रहेगा और मेरी इच्छा भी पूरी हो जाएगी।”

सद्गुरु ने एकदम स्वीकार करते हुए कहा, “यह बहुत अच्छा विचार है, बच्चा। यदि तू नियमित रूप से उनकी देखभाल करेगा, तो मैं तुझे अगले साल एक बड़ा और मोटा बकरा खरीदने में मदद कर सकता हूँ।”

लड़का बहुत खुश हुआ और उसने तत्परता के साथ बकरों की देखभाल शुरू की। उसने खेत में घास कटने के लिए कामगार रखा, उन्हें नीर देने का व्यवस्था की और उनका ध्यान रखा।

समय बीतता रहा और एक साल बाद, ईद का दिन आ गया। लड़का उत्साहित था और सद्गुरु के पास गया।

सद्गुरु ने उससे पूछा, “क्या तूने अपने बकरों की देखभाल की?”

लड़का ने हाँ करते हुए कहा, “हां, महाराज। मैंने रोज़ उनकी देखभाल की, उन्हें खाना खिलाया, उनका ध्यान रखा और उनकी सेवा की।”

सद्गुरु ने अपनी आँखों को बंद करके मुस्कान की और कहा, “तूने सच में अच्छा काम किया है, बच्चा। अब तू जाकर एक बड़ा और मोटा बकरा खरीद सकता है।”

लड़का बहुत खुश हुआ और वह उसी दिन बड़ा और मोटा बकरा खरीदने गया। उसकी ईद बहुत धूमधाम से मनाई गई और सभी लोग उसके सफलता की प्रशंसा कर रहे थे।

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि सफलता और आपूर्ति मिलने के लिए हमें मेहनत और समर्पण की आवश्यकता होती है। इच्छाओं की पूर्ति के लिए सिर्फ सोचने से काम नहीं चलेगा, बल्कि हमें कार्य में उतरना होगा। संघर्ष और मेहनत के बिना कोई भी सफलता संभव नहीं है। इसलिए, हमें अपने लक्ष्यों के लिए मेहनत करनी चाहिए और निरंतरता से काम करनी चाहिए।

“एक बेटे की सीख” हिंदी कहानी (Moral Story in Hindi)

एक समय की बात है, एक गांव में एक आदमी अपने बेटे के साथ रहता था। यह आदमी अपने बेटे को अच्छे मूल्यों और नैतिकता के साथ पालने का प्रयास करता था। उसका बेटा नाम था राजू। राजू बहुत अच्छा और सच्चा बच्चा था, लेकिन कभी-कभी उसे गुस्सा आ जाता था और वह अपनी मां की बातों को सुनने से इनकार कर देता था।

एक दिन, राजू की मां बाजार गई और उसे कुछ सामान खरीदना था। वह राजू को भी साथ ले गई। दुकान पर पहुंचने पर राजू देखता है कि दुकानदार अपनी गलती से कुछ सामान ज्यादा दे रहा है। उसे इसके बारे में ज्ञान होने के बावजूद, राजू ने उसे बताने की बजाय चुपचाप उस सामान को ले लिया।

अगले दिन, राजू और उसकी मां फिर से वही दुकान पर गए। इस बार भी दुकानदार उसे गलती से अधिक सामान देने का दोषी था। राजू फिर से चुपचाप सामान ले आया।

दो दिन बाद, उसी दुकान में एक ग्राहक आया जो बड़ी संख्या में सामान खरीद रहा था। दुकानदार गलती से इस ग्राहक को बहुत कम सामान दे देता है। राजू ने यह देखा और अपने पिता को बताने चाहा, लेकिन उसे याद आया कि उसने दो बार उसी दुकान से अधिक सामान लिया था और चुपचाप ले आया था। इसलिए वह बिना कुछ कहे चला गया।

रात के खाने के बाद, राजू अपने पिता से बात करने के लिए उनके पास गया। उसने उनसे पूछा, “पिताजी, क्या आप मुझसे एक सवाल पूछ सकते हैं?”

पिता ने हंसते हुए कहा, “जरूर बेटा, पूछो।”

राजू ने कहा, “पिताजी, अगर कोई अच्छा और सच्चा बनना चाहता है, तो क्या उसे कभी जालसाजी करनी चाहिए?”

पिता ने विचार किया और कहा, “नहीं, बेटा, हमेशा सच्चाई पर चलने चाहिए। कभी-कभी हमें गलती हो सकती है, लेकिन हमेशा उसे सुधारना चाहिए। सच्चाई और ईमानदारी ही हमें अच्छा और सच्चा बनाती है।”

राजू ने अपने पिता को देखा और कहा, “पिताजी, मैं दुकानदार की बात बताने के बजाय चुपचाप सामान ले आया। मुझे खेद है कि मैंने गलती की।”

पिता ने उसे गले लगाया और कहा, “यह तेरी बुद्धिमानी है कि तूने अपनी गलती समझी। यही एक सच्चा और बड़ा कदम है। हमेशा सच्चाई पर चल, बेटा।”

राजू ने अपने पिता के शब्दों को मन में लिया और वादा किया कि वह हमेशा सच्चा और ईमानदार रहेगा। यह एक महत्वपूर्ण सीख थी जो उसके लिए जीवनभर साथ रहने की एक महत्वपूर्ण मूल्य बन गई।

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमेशा सच्चाई और ईमानदारी पर चलने चाहिए। हमें जालसाजी करने की जगह सच्चाई को बढ़ावा देना चाहिए। यही हमारे और हमारे समाज के लिए अच्छाई का मार्ग है।

इस कहानी का संदेश है कि जीवन में सच्चाई और ईमानदारी हमेशा ऊँचाई तक ले जाती है। यह हमेशा अपार सफलता की ओर ले जाता है और हमें अच्छे मूल्यों और नैतिकता के प्रतीक बनाता है। इसलिए, हमेशा सच्चाई का रास्ता चुनें और सच्चा और ईमानदार रहें।

“ईमानदारी” हिंदी कहानी (Moral Story in Hindi)

एक समय की बात है, एक छोटा सा गांव था जहां एक बहुत ही ईमानदार और अच्छा लड़का रहता था। उसका नाम था राजू। राजू गांव के सभी लोगों के दिलों में बहुत प्यार पाता था, क्योंकि उसने हमेशा आपसी मदद करने का आदेश दिया था और किसी की मदद के लिए कभी भी नहीं अनादर किया था।

एक दिन, गांव के एक बड़े सरपंच ने एक बड़ी चीज़ को लेने का फैसला किया। यह चीज़ बहुत ही महंगी थी और वह सबको खरीदने के लिए अचंभित हो गए। इसलिए उन्होंने अपने प्रशासनिक कार्यक्रम का आयोजन किया और गांव के सभी लोगों को बताया कि वह चीज़ बहुत जरूरी है और सभी को एक साथ पैसे जमा करने होंगे ताकि वह चीज़ खरीद सकें।

गांव के सभी लोगों को चिंता हुई क्योंकि यह चीज़ उनके लिए बहुत महंगी थी और सभी लोग गरीब थे। सभी ने चर्चा की और एक-दूसरे से पूछा कि इस चीज़ के लिए कितना पैसा देना होगा। हर कोई तनिका-तनिका करके अपने छोटे-छोटे सिक्कों को जमा करने लगे, लेकिन वह चीज़ की कीमत के पास भी नहीं पहुंच सके।

फिर आया राजू, जो देखकर लोग हैरान रह गए। राजू के पास तो कुछ भी नहीं था, लेकिन उसने देखा कि लोगों को चिंता हो रही है और वह सभी को मदद करना चाहता है।

राजू ने बचपन में एक स्वर्णिम सोने की बर्तन की ईंट ढ़ुंढ़ ली, जो उसकी बाबा जी के पास होने की याद आई। राजू ने सोचा, “मैं इसे लोगों को बेच दूंगा और उनकी मदद कर सकूंगा।”

इसलिए राजू ने सभी लोगों को अपने घर बुलाया और अपने खजाने में से सोने की बर्तन निकालकर सबके सामने रख दी। लोग देखकर हैरान रह गए और राजू से पूछा, “राजू, तुम क्या कर रहे हो? क्या ये सोना हमें दे रहे हो?”

राजू ने मुस्कान देते हुए कहा, “नहीं, दोस्तों, यह सोना मैं आप सबको बेचने के लिए नहीं रख रहा हूं। मैं चाहता हूं कि हम सब इसे खरीद सकें और उस चीज़ को खरीद सकें जिसके लिए हम यहां इकट्ठे हुए हैं।”

लोग राजू के वचन पर विश्वास करते हुए उसे अपने बचत के पैसे देने लगे और कुछ घंटों में ही वे सब पूरी राशि इकट्ठा कर लाए। राजू ने सभी को धन्यवाद दिया और उन्हें खरीदारी के लिए गांव के बाजार में भेज दिया।

कुछ दिनों बाद, राजू ने चीज़ खरीद ली और उसे लोगों के सामने लाकर रख दिया। सभी लोग खुश थे और धन्यवाद कह रहे थे कि राजू ने उन्हें इस चीज़ को खरीदने में मदद की।

इस कहानी का सीख यह है कि ईमानदारी और सहायता कभी भी लोगों के दिलों में विश्वास और प्यार का आदान-प्रदान करती है। राजू ने अपनी ईमानदारी से लोगों का विश्वास जीता और वह बिना कुछ मांगे लोगों की मदद की। यह साबित करता है कि सच्ची मेहनत, समर्पण और ईमानदारी से हम जीवन में सफलता प्राप्त कर सकते हैं।

“संतुष्टि” हिंदी कहानी (Moral Story in Hindi)

बहुत समय पहले की बात है, एक छोटे से गांव में एक बूढ़े आदमी रहते थे। उनका नाम रामदास था। वह बहुत ही सच्चे और नेक हृदय के मालिक थे। उन्होंने अपने जीवन में बहुत सारे लोगों की मदद की और उनकी सेवा की। लोग उन्हें बहुत प्यार करते थे और उनकी बातें सुनने के लिए उनके पास आते थे।

एक दिन रामदास ने सुना कि उसके पड़ोसी को बीमारी हो गई है। रामदास तत्परता से उसके पास गए और पूछा, “आप कैसे हैं?” उसके पड़ोसी ने उसे कहा कि वह बहुत दर्द महसूस कर रहे हैं और उन्हें किसी अच्छे डॉक्टर की जरूरत है।

रामदास ने उसे अपने नजदीकी शहर में एक प्रमुख डॉक्टर के पास ले गए। डॉक्टर ने उसे जांचा और दवाई दी, जिससे वह ठीक हो गए। पड़ोसी बहुत आभारी थे और उन्होंने रामदास को बहुत धन्यवाद दिया।

कुछ समय बाद, एक गरीब व्यक्ति रामदास के पास आया और उससे अपनी तकलीफ सुनाई। उसका दांत बहुत दर्द कर रहा था और उसे उसकी समस्या का समाधान चाहिए था। रामदास ने अपने पड़ोसी को याद किया और उसे उसी डॉक्टर के पास ले गए।

डॉक्टर ने उसे जांचा और एक खराब दांत निकाल दिया। व्यक्ति खुशी से भरपूर था और उसने रामदास को अपने धन्यवाद का एक पत्र लिखा। रामदास ने धन्यवाद ग्रहण किया और व्यक्ति को वापस उसके गांव ले गए।

उसके बाद से, गांव में बहुत सारे लोग रामदास के पास आने लगे। सभी अपनी समस्याओं का समाधान चाहते थे। रामदास ने हमेशा सबकी मदद की, जैसे उसकी संभावना थी। उन्होंने कई लोगों को डॉक्टर के पास ले गए और उन्हें उनकी चिंताओं से निजात दिलाई।

एक दिन, रामदास ने अपने दोस्त से सवाल किया, “मैंने बहुत सारे लोगों की मदद की है, लेकिन अब मैं खुद को अकेला महसूस कर रहा हूं। क्या मैं सही कर रहा हूं?”

उसके दोस्त ने कहा, “रामदास, तुम बहुत अच्छा काम कर रहे हो। लेकिन तुम खुद को संभालने के लिए भी समय निकालो। तुम इतनी मेहनत करते हो और अन्य लोगों की मदद करते हो, इसलिए तुम्हें अपनी सेहत और खुशी का ध्यान रखना चाहिए।”

रामदास ने अपने दोस्त के बात को मन में रखा और अपनी सेवा के साथ-साथ खुद को भी ध्यान देना शुरू किया। वह अब अपने दिन की एक अवधि में ध्यानावस्था में बिताते और योगाभ्यास करते थे।

इस प्रकार, रामदास ने अपने जीवन में संतुष्टि और खुशी प्राप्त की। उनकी सेवा ने बहुत सारे लोगों को सहायता प्रदान की और उन्होंने अपने आप में भी सुधार किया। वे आदर्श मनुष्य बन गए और अपने आसपास की समस्याओं का समाधान ढूंढने में मदद करने के लिए इंसानियत के अद्वितीय गुणों को प्रदर्शित किया।

इस कहानी से हमें यह सिख मिलती है कि हमें अपनी सेवा के साथ-साथ अपनी संतुष्टि और खुशी के लिए समय निकालना चाहिए। हमें अपने आप को स्वस्थ और संतुष्ट रखने के लिए ध्यान देना चाहिए ताकि हम दूसरों की सहायता करने के लिए सक्रिय रह सकें। इसी तरह, हम एक अच्छे और उदार इंसान बन सकते हैं और समाज में एक पॉजिटिव परिवर्तन ला सकते हैं।

“गोपाल और ब्रह्मदत्त” हिंदी कहानी (Moral Story in Hindi)

बहुत समय पहले की बात है, एक छोटे से गांव में गोपाल नामक एक लड़का रहता था। गोपाल बहुत ही ईमानदार और सच्चा बच्चा था। वह बड़े होने के बावजूद भी बहुत संयमी और नेक हरकतों में रहता था। वह अपने माता-पिता की बहुत सुनता था और उनकी बातों का सम्मान करता था।

एक दिन, गोपाल के गांव में एक ब्राह्मण ब्रह्मदत्त नामक आदमी आया। ब्रह्मदत्त एक स्वतंत्र जीवन जीने वाले थे और अपनी वाणी के बहुत अहमियत देते थे। गोपाल ने सुना था कि ब्रह्मदत्त जी बहुत ज्ञानी और प्रबुद्ध व्यक्ति हैं, इसलिए उन्हें एक मंच पर बैठे हुए देखने का ख्याल आया।

गोपाल ने अपने दोस्तों को भी इसकी जानकारी दी और सब दोस्त ब्रह्मदत्त जी के पास चले गए। उन्होंने ब्रह्मदत्त जी के पास पहुंचते ही उनसे कुछ सवाल पूछने की इच्छा जताई। ब्रह्मदत्त जी ने उनके सवालों का उत्तर बहुत ही बुद्धिमानी से दिया। गोपाल को उनके उत्तर बहुत पसंद आए और उन्होंने उनसे बहुत सीख ली।

ब्रह्मदत्त जी ने गोपाल के प्रश्नों का उत्तर देने के बाद उनसे पूछा, “अब तुम मेरे पास एक सवाल पूछो, और अगर मैं इसका सही उत्तर दे नहीं पाता तो तुम्हारे बहुमूल्य रत्न को मैं तुम्हें दूंगा।”

गोपाल ने सोचा कि इस मौके का फायदा उठाना चाहिए और ब्रह्मदत्त जी से एक सवाल पूछा, “आप ब्रह्मदत्त जी हैं, तो क्या आप जानते हैं कि ब्रह्मा, विष्णु और महेश कितने बच्चे हैं?”

ब्रह्मदत्त जी ने थोड़ी देर सोचा और फिर उत्तर दिया, “यह एक बहुत अच्छा सवाल है, लेकिन मुझे उसका उत्तर नहीं पता है।”

ब्रह्मदत्त जी ने कहा, “मैं वादा करता हूं कि अगले हफ्ते तक मैं इस सवाल का उत्तर ढूंढ़ लूंगा और तुम्हें उस रत्न का उपहार दूंगा।”

गोपाल बहुत खुश हुआ और ब्रह्मदत्त जी की प्रशंसा करते हुए उसके गांव में वापस चला गया।

अगले हफ्ते, ब्रह्मदत्त जी ने गोपाल को अपने पास बुलाया और कहा, “गोपाल, मैंने तुम्हारे सवाल का उत्तर खोज लिया है। ब्रह्मा, विष्णु और महेश के कुल १० बच्चे हैं।”

गोपाल ने खुशी-खुशी उत्तर सुना और ब्रह्मदत्त जी की तारीफ की। उसने कहा, “ब्रह्मदत्त जी, आप बहुत ही ज्ञानी हैं। मैं आपके इस गुण को देखकर आपसे एक और सवाल पूछना चाहूंगा।”

ब्रह्मदत्त जी ने हंसते हुए कहा, “हाँ, गोपाल, पूछो।”

गोपाल ने पूछा, “ब्रह्मदत्त जी, क्या आप जानते हैं कि क्या आपके गुरु भी आपके जितने ज्ञानी हैं?”

ब्रह्मदत्त जी ने चिंता करते हुए कहा, “मुझे पूरी तरह से यकीन नहीं है, लेकिन मैं उनसे ज्यादा ज्ञानी होने की कोई आशंका नहीं कर सकता।”

गोपाल ने ब्रह्मदत्त जी को देखा और हंसते हुए कहा, “आपने मेरे सवाल का उत्तर सही दिया है, लेकिन आपने मेरे दृष्टि को गलत साबित किया है। मेरा रत्न अब आपके पास नहीं होगा।”

ब्रह्मदत्त जी हैरान रह गए और पूछा, “गोपाल, तुम इसे कैसे कह सकते हो?”

गोपाल ने कहा, “ब्रह्मदत्त जी, आपने मुझे सच्चाई का सामर्थ्य और विश्वास दिखाया है, लेकिन आपने यह भूल गए कि ज्ञान की मात्रा हमेशा बढ़ती है। आपने बहुत कुछ सिखाया है, लेकिन मेरे दिल में भी ज्ञान की एक चमक है और उसे नष्ट करना नहीं चाहता हूं। अगर मैं अपना रत्न आपको देता हूं, तो शायद मेरा ज्ञान खत्म हो जाए। इसलिए, मेरे रत्न को मैं खुद ही संभालूंगा।”

ब्रह्मदत्त जी ने गोपाल की आंखों में गहराई से देखा और उसे गले लगाकर कहा, “तू सच्चा ज्ञानी है, मेरा आशीर्वाद तुझे सदैव प्राप्त रहे।”

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि ज्ञान सिर्फ एक व्यक्ति के पास होता है या नहीं, इससे महत्वपूर्ण है कि हम अपने अन्दर की ज्ञान की चमक को कभी खोने नहीं दें। हमें सदैव हमारी अपनी सच्चाई पर विश्वास रखना चाहिए और अपनी मानसिक और आध्यात्मिक विकास में लगे रहना चाहिए। गोपाल ने अपने नेक और संयमित व्यवहार के माध्यम से अपनी प्रतिष्ठा बनायी रखी और आत्मविश्वास की अद्वितीयता को साबित किया।

“सफलता” हिंदी कहानी (Moral Story in Hindi)

एक समय की बात है, एक छोटे से गांव में एक गरीब किसान रहता था। उसका नाम रामू था। रामू की वार्ता पूरे गांव में फैली हुई थी क्योंकि वह अपने ईमानदारी, नेकी और मेहनतशीलता के लिए प्रसिद्ध था। रामू बहुत गरीब था, लेकिन उसका मन बहुत ही सुंदर था। उसके पास कुछ नहीं था, लेकिन वह अपने कठिनाइयों का सामना करने में सक्षम था। उसके लिए जीना अच्छे और ईमानदारी से जीना सबसे महत्वपूर्ण था।

एक बार रामू को बहुत बड़ी परेशानी का सामना करना पड़ा। उसकी जमीन पर अचानक बहुत ज्यादा सूखा पड़ गया और उसने सोचा कि वह अपने परिवार को कैसे पालेगा। वह रोजगार के लिए घूम-घूमकर काम ढूंढ़ने निकल पड़ा। लेकिन वह खुद को किसी काम में नहीं लगा पाया। लंबी तलाशों के बाद, एक दिन उसने एक अजीबोगरीब वृक्ष को देखा।

रामू के मन में एक आशा जगी कि वह वृक्ष से कुछ मदद मिल सकती है। वह वृक्ष के पास गया और पूछा, “भगवान का आशीर्वाद हो तो कृपया मेरी मदद करें, मुझे कोई तरीका बताएं कि मैं अपने परिवार की देखभाल कर सकूँ।”

वृक्ष ने कहा, “रामू, मैं तेरी मदद कर सकता हूँ। जब तू जगह-जगह घूम-घूमकर रोजगार ढूंढ़ रहा था, तब मैं तेरे पीछे रहा हूँ। एक साल पहले तूने मुझे रास्ते में उगे हुए देखा था, लेकिन तूने मुझे अज्ञातवासी मान लिया। यह वो जगह है जहां तू मेरे पास आया है।”

रामू हैरान हो गया और अपनी गलती स्वीकार की। उसने कहा, “क्षमा करें, मेरे बुद्धिमानी में लापरवाही हो गई। मुझे खुद को धन्यवाद देना चाहिए कि आपने मेरी मदद की। अब मुझे क्या करना चाहिए?”

वृक्ष ने कहा, “रामू, तेरी मेहनत और ईमानदारी ने तुझे स्वर्ग से उत्पन्न किया है। मैं तेरी मदद करने के लिए तुझे कुछ दूंगा, लेकिन तू उसे ध्यान से उपयोग करना।”

वृक्ष ने रामू को एक छोटी सी बीज दी और कहा, “इसे अपनी जमीन में बो दे। इसकी देखभाल कर और उसे ध्यान से पानी दे, सूरज की रोशनी में इसे पकने दे।”

रामू ने वृक्ष की सलाह मानी और वह बीज ले गया। उसने अपनी जमीन में एक गहरा खड़ान खोदा और बीज रख दिया। फिर उसने ध्यान से उसे पानी दिया और सूरज की किरणों में उसकी देखभाल की।

कुछ वक्त बाद, वृक्ष से छोटी सी पौधी निकली। रामू बहुत खुश हुआ और वह पौधे की देखभाल करने लगा। धीरे-धीरे पौधा बढ़ने लगा और एक दिन एक अच्छी सी बड़ी पेड़ हो गई।

पेड़ ने रामू से कहा, “रामू, तूने मेरी सहायता की है और अब मैं तुझे अपनी सहायता करूंगा। मेरे ब्रांचों पर फल लगेंगे, तू उन्हें बेच कर अपने परिवार की देखभाल कर सकेगा।”

रामू बहुत खुश हो गया और धन्यवाद दिया। पेड़ ने फल दिया और रामू ने उन्हें बेचकर बहुत सारा पैसा कमाया। वह खुद को और अपने परिवार को एक अच्छा जीवन दे पाया।

इस कहानी से हमें यह सिख मिलती है कि कठिनाइयाँ और आपातकाल में हमें आशा और विश्वास बनाए रखना चाहिए। अपने कार्यों में मेहनत, धैर्य और ईमानदारी रखना बहुत महत्वपूर्ण होता है। यदि हम अपने लक्ष्यों के प्रति समर्पित हैं और बुद्धिमानी से काम करते हैं, तो हमेशा सफलता हासिल कर सकते हैं।

निष्कर्ष

दोस्तों आपको हमारी प्रेरक कहानियां (Moral Stories for Kids in Hindi) कैसी लगी, और अगर आप इस कहानी से सम्बंधित कोई सुझाव देना चाहते हैं, तो आप हमें कमेंट करके बता सकते हैं। क्योंकि आपके कमेंट से ही हमें पता चलता है, कि आपको यह कहानी कितनी पसंद आयी और आपको इस कहानी को पढ़ कर अच्छा लगा हो तो, इसे अपने दोस्तों और परिचित के साथ शेयर करना ना भूलें। धन्यवाद।

Leave a Comment