सिंहासन बत्तीसी की कहानियाँ (Sinhasan Battisi Ki Kahaniyan): “सिंहासन बतीसी” संस्कृत साहित्य की एक रचना है, और यह उत्तरी संस्करण में “सिंहासन द्वातृंशिका” और दक्षिणी संस्करण में “विक्रमचरित” के रूप में उपलब्ध है। ऐसा माना जाता है कि ये कहानियाँ अतीत में क्षेबेंद्र नामक ऋषि द्वारा लिखी गई थीं। बंगाल में इसका श्रेय वररुचि को भी दिया जाता है। इसलिये आज हम आपके लिये सिंहासन बत्तीसी की कहानियाँ (Sinhasan Battisi Ki Kahaniyan in Hindi) लेकर आये हैं। जिनको पढ़कर आपको भी बहुत सारा ज्ञान और शिक्षा देगी। जो कि आपके जीवन में बहुत काम आएगी। तो आइये दोस्तों पढ़ते हैं, मजेदार सिंहासन बत्तीसी की कहानियाँ।
सिंहासन बत्तीसी की कहानियाँ (Sinhasan Battisi Ki Kahaniyan in Hindi)
“सिंहासन बतीसी” या “सिंहासन बत्तीसी” जिसे (“सिंहासन द्वातृंशिका” और “विक्रमचरित”) भी कहा जाता है। लोक कथाओं का एक संग्रह है जो करिश्माई और न्यायप्रिय शासक, लोगों के प्रिय नेता, दूरदर्शी और बुद्धिमान राजा, महाराजा विक्रमादित्य के इर्द-गिर्द घूमती है। , भारतीय लोककथाओं का एक प्रमुख पात्र। हम बचपन से ही ऐसी अनेक कहानियाँ पढ़ते आ रहे हैं जिनमें उनके असाधारण गुणों की प्रशंसा की गई है। “सिंहासन बतीसी” भी ऐसा ही एक संग्रह है, जिसमें 32 कहानियाँ शामिल हैं जो राजा विक्रमादित्य के चरित्र के विभिन्न पहलुओं को खूबसूरती से चित्रित करती हैं।
“सिंहासन बतीसी” के दक्षिणी संस्करण ने अधिक लोकप्रियता हासिल की और इसका विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद किया गया, जो पौराणिक कथाओं की तरह भारतीय मौखिक परंपरा का एक अभिन्न अंग बन गया। हालाँकि इसकी रचना की सटीक अवधि का पता लगाना मुश्किल है, लेकिन अनुमान है कि इसे प्रसिद्ध “बैताल पच्चीसी” के बाद 11वीं शताब्दी के समय पर या निष्चित ही उसके बाद लिखा गया होगा। इसका नाम “द्वात्रिंशत्पुत्तलिका” है।
इन कहानियों का कथानक एक ऐसी कहानी पर आधारित है जहां राजा भोज चंद्रभान नाम के एक साधारण चरवाहे से आकर्षित हो जाते हैं, जो अनपढ़ होने के बावजूद एक टीले पर बैठकर निर्णय देने की क्षमता रखता है। चंद्रभान की अद्वितीय क्षमता के बारे में उत्सुक होकर, राजा भोज भेष बदलकर उसे एक जटिल मामले को सुलझाते हुए देखते हैं। उसके निर्णयों और आत्मविश्वास से प्रभावित होकर, राजा भोज चंद्रभान की असाधारण क्षमताओं के बारे में और अधिक जानना चाहते हैं। चंद्रभान ने खुलासा किया कि शक्ति टीले में ही निहित है, और जो कोई भी उस पर बैठता है उसे असाधारण ज्ञान प्राप्त होता है।
और अधिक उत्सुक होकर, राजा भोज ने टीले की खुदाई करने का फैसला किया और उसके अंदर दफन एक शानदार सिंह सिंहासन की खोज की। सिंहासन बत्तीस पुतलियों और बहुमूल्य रत्नों से सुशोभित है। हालाँकि, जब राजा उस पर बैठने की कोशिश करता है, तो कठपुतलियाँ उसका मज़ाक उड़ाना शुरू कर देती हैं। उनकी हँसी से उत्सुक होकर, राजा भोज ने उनसे कारण पूछा, और प्रत्येक कठपुतली राजा विक्रमादित्य के बारे में एक कहानी सुनाना शुरू कर देती है, जिसमें उन गुणों पर जोर दिया जाता है जो एक योग्य और गुणी शासक में होने चाहिए।
ये कहानियाँ इतनी लोकप्रिय हैं कि कई संग्राहकों ने इन्हें विभिन्न रूपों में प्रस्तुत किया है, प्रत्येक में कठपुतलियों के लिए अलग-अलग व्यवस्था और नाम हैं। हिंदी साहित्य के मार्गदर्शन की हमारी यात्रा में, हम इन कहानियों को ऊपर उल्लिखित कठपुतलियों के नामों के माध्यम से प्रकाशित करेंगे, प्रत्येक कहानी के लिंक प्रदान करेंगे, यह सुनिश्चित करते हुए कि आप इन सभी कहानियों को एक ही स्थान पर पढ़ सकते हैं।
सिंहासन बत्तीसी की पहली कहानी – “रत्नमंजरी”
एक बार की बात है, अम्बावती नाम के एक राज्य में एक राजा था, जिसका नाम धर्मसेन था. राजा धर्मसेन बहुत दयालु और उदार थे. उनके चार रानियां थीं. एक रानी ब्राह्मण, दूसरी क्षत्रिय, तीसरी वैश्य और चौथी शूद्र थीं.
ब्राह्मणी रानी से एक पुत्र हुआ, जिसका नाम ब्राह्मणीत रखा गया. क्षत्रिय रानी से तीन पुत्र हुए, जिनका नाम विक्रमादित्य, शंख और भर्तृहरि रखा गया. वैश्य रानी से एक पुत्र हुआ, जिसका नाम चंद्र रखा गया. शूद्र रानी से धन्वंतरि हुए.
जब बच्चे बड़े हुए तो ब्राह्मणी रानी घर से निकल पड़ी और धारापुर आ गई. वहां उसने एक योगी से प्रार्थना की कि वह उसके पुत्र को राजा बना दे. योगी ने कहा, “तुम्हारे पुत्र विक्रमादित्य एक महान राजा बनेंगे. वे सात द्वीप नवखंड के राजा होंगे.”
ब्राह्मणी रानी वापस अम्बावती चली गई और अपने पुत्र विक्रमादित्य को राजा बना दिया. विक्रमादित्य एक महान राजा बने. वे न्यायप्रिय और उदार थे. उन्होंने अपने राज्य में सभी लोगों को खुश रखा.
एक दिन, विक्रमादित्य को एक सपना आया. सपने में एक देवता ने उन्हें कहा, “तुमने अपने राज्य में सभी लोगों को खुश रखा है. इसलिए मैं तुम्हें एक वरदान दे रहा हूं. तुम जो भी चाहोगे, मैं तुम्हें दे दूंगा.”
विक्रमादित्य ने कहा, “मैं एक ऐसी पुतली चाहता हूं, जो बहुत सुंदर और बुद्धिमान हो.”
देवता ने कहा, “तुम्हारा वरदान मंजूर है. मैं तुम्हें एक ऐसी पुतली दूंगा, जो बहुत सुंदर और बुद्धिमान होगी.”
देवता ने विक्रमादित्य को एक पुतली दी. पुतली बहुत सुंदर थी. उसके बाल काले और लंबे थे. उसकी आंखें नीली थीं. उसके होंठ गुलाबी थे. वह बहुत बुद्धिमान भी थी. वह विक्रमादित्य की हर बात समझती थी.
विक्रमादित्य और पुतली बहुत प्यार करते थे. वे एक साथ बहुत खुश थे.
एक दिन, पुतली ने विक्रमादित्य से कहा, “मैं तुम्हारे साथ नहीं रह सकती. मुझे वापस मेरे घर जाना होगा.”
विक्रमादित्य बहुत दुखी हुए. उन्होंने पुतली से पूछा, “तुम क्यों मेरे साथ नहीं रह सकतीं?”
पुतली ने कहा, “मैं एक अप्सरा हूं. मुझे देवताओं ने तुम्हारे पास भेजा था. अब मेरा समय पूरा हो गया है. मुझे वापस देवलोक जाना होगा.”
विक्रमादित्य बहुत दुखी थे. उन्होंने पुतली को जाने नहीं दिया. उन्होंने पुतली को कैद कर लिया.
पुतली विक्रमादित्य से बहुत नाराज हुई. उसने विक्रमादित्य को कहा, “तुमने मुझे कैद कर लिया है. मैं तुम्हारे साथ नहीं रह सकती. मैं तुम्हारी कैद से भाग जाऊंगी.”
पुतली विक्रमादित्य की कैद से भाग गई. वह वापस देवलोक चली गई.
विक्रमादित्य बहुत दुखी हुए. उन्होंने पुतली को खो दिया था. वे बहुत दिनों तक पुतली को याद करते रहे.
एक दिन, विक्रमादित्य को एक सपना आया. सपने में पुतली ने उन्हें कहा, “तुमने मुझे बहुत दुख दिया है. लेकिन मैं तुम्हें माफ कर देती हूं. मैं तुम्हारे पास वापस आऊंगी. लेकिन तुम मुझे कभी नहीं कैद करोगे.”
विक्रमादित्य बहुत खुश हुए. उन्होंने पुतली को माफ कर दिया. उन्होंने पुतली को वापस अपने पास बुला लिया.
विक्रमादित्य और पुतली एक साथ बहुत खुश थे. वे कभी अलग नहीं हुए.
एक समय की बात है, एक नगर में एक गरीब ब्राह्मण रहता था. वह बहुत ही ईमानदार और मेहनती था. वह प्रतिदिन अपने घर से दूर जाकर भिक्षा मांगता था और जो कुछ भी मिलता था, उसी पर अपना परिवार का पालन करता था.
एक दिन, ब्राह्मण भिक्षा मांगते हुए एक राजकुमारी के महल के पास पहुंचा. राजकुमारी ने ब्राह्मण को देखकर बहुत दया की और उसे अपने महल में बुला लिया. राजकुमारी ने ब्राह्मण को खाना खिलाया और उसे एक सोने का अंगूठी भेंट की.
ब्राह्मण बहुत खुश हुआ. उसने राजकुमारी को धन्यवाद दिया और अपने घर चला गया.
ब्राह्मण के घर पहुंचने पर उसकी पत्नी ने उसे सोने का अंगूठी देखकर बहुत खुश हुई. उसने ब्राह्मण से कहा, “यह अंगूठी बहुत कीमती है. तुम इसे बेचकर हमें बहुत धन कमा सकते हो.”
ब्राह्मण ने कहा, “मैं इस अंगूठी को नहीं बेचूंगा. यह राजकुमारी का उपहार है. मैं इसे हमेशा अपने पास रखूंगा.”
ब्राह्मण की पत्नी बहुत नाराज हुई. उसने कहा, “तुम बहुत मूर्ख हो. तुम इस अंगूठी को बेचकर हमें बहुत धन कमा सकते हो, लेकिन तुम इसे नहीं बेचना चाहते.”
ब्राह्मण ने कहा, “धन से अधिक महत्वपूर्ण है सम्मान. मैं राजकुमारी का सम्मान नहीं तोड़ना चाहता.”
ब्राह्मण की पत्नी ने कहा, “तुम बहुत मूर्ख हो. तुम राजकुमारी का सम्मान तोड़कर हमें बहुत धन कमा सकते हो.”
ब्राह्मण और उसकी पत्नी में बहुत झगड़ा हुआ. अंत में, ब्राह्मण की पत्नी ने सोने का अंगूठी चुरा लिया और उसे बेच दिया.
ब्राह्मण को जब यह बात पता चली, तो वह बहुत दुखी हुआ. उसने अपनी पत्नी से कहा, “तुमने बहुत गलत किया है. तुमने राजकुमारी का सम्मान तोड़ा है.”
ब्राह्मण की पत्नी ने कहा, “मैंने कुछ भी गलत नहीं किया है. मैंने तुम्हें धन कमा कर दिया है.”
ब्राह्मण और उसकी पत्नी में फिर से झगड़ा हुआ. अंत में, ब्राह्मण ने अपनी पत्नी को घर से निकाल दिया.
ब्राह्मण बहुत दुखी था, लेकिन वह अकेले ही अपना जीवन जीने लगा. वह प्रतिदिन अपने घर से दूर जाकर भिक्षा मांगता था और जो कुछ भी मिलता था, उसी पर अपना जीवन यापन करता था.
एक दिन, ब्राह्मण भिक्षा मांगते हुए राजकुमारी के महल के पास पहुंचा. राजकुमारी ने ब्राह्मण को देखकर उसे पहचान लिया. राजकुमारी बहुत खुश हुई और उसने ब्राह्मण को अपने महल में बुला लिया.
राजकुमारी ने ब्राह्मण से कहा, “मैं तुम्हारी ईमानदारी और मेहनत से बहुत प्रभावित हूं. मैं तुम्हें अपना राजकुमार बनाना चाहती हूं.”
ब्राह्मण बहुत खुश हुआ. उसने राजकुमारी को धन्यवाद दिया और राजकुमारी का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया.
ब्राह्मण राजकुमारी का राजकुमार बन गया और बहुत खुशी से रहने लगा. वह प्रतिदिन अपनी प्रजा की सेवा करता था और वह अपनी प्रजा का बहुत प्यार करता था.
ब्राह्मण और राजकुमारी का विवाह हुआ और वे बहुत खुशी से रहने लगे. वे एक बच्चे के माता-पिता बने और उनका जीवन बहुत सुखमय बीता.
सिंहासन बत्तीसी की तीसरी कहानी – “प्रेम की पराजय”
एक समय की बात है, एक राजा था जो बहुत ही शक्तिशाली था. उसके पास बहुत सारा धन और संपत्ति थी. राजा बहुत ही सुंदर था और उसे बहुत सारी महिलाएं पसंद करती थीं. राजा ने अपनी पूरी जिंदगी में बहुत सारी महिलाओं से प्यार किया था, लेकिन उसे कभी भी कोई महिला नहीं मिल सकी जो उसे पूरी तरह से प्यार करती हो.
एक दिन, राजा ने एक महिला से मुलाकात की जो बहुत ही सुंदर थी. राजा उस महिला से तुरंत ही प्यार कर बैठा. राजा ने उस महिला से शादी कर ली और वह महिला राजा की पत्नी बन गई. राजा और उसकी पत्नी बहुत ही खुश थे.
एक दिन, राजा की पत्नी को एक बीमारी हो गई. राजा ने अपनी पत्नी को बहुत सारे डॉक्टरों को दिखाया, लेकिन कोई भी डॉक्टर उसकी पत्नी को ठीक नहीं कर पाया. राजा की पत्नी की मृत्यु हो गई. राजा बहुत दुखी था. उसने अपनी पत्नी की मृत्यु का बदला लेने का फैसला किया.
राजा ने अपने सैनिकों को एक युद्ध के लिए भेजा. राजा के सैनिकों ने युद्ध में जीत हासिल की और उन्होंने दुश्मनों को हराया. राजा ने दुश्मनों के राज्य को जीत लिया और उस राज्य को अपने राज्य में मिला लिया.
राजा को बहुत सारी संपत्ति और धन मिला, लेकिन उसे कोई खुशी नहीं मिली. राजा को अपनी पत्नी की बहुत याद आती थी. राजा ने महसूस किया कि प्रेम ही सबसे शक्तिशाली चीज है. प्रेम के सामने शक्ति और धन कुछ भी नहीं है.
राजा ने अपनी पत्नी की याद में एक मंदिर बनवाया. राजा ने मंदिर में अपनी पत्नी की मूर्ति रखवाई. राजा हर दिन मंदिर जाता था और अपनी पत्नी को याद करता था. राजा ने महसूस किया कि अपनी पत्नी की याद में रहना ही उसके लिए सबसे अच्छा है.
शिक्षा
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि प्रेम ही सबसे शक्तिशाली चीज है. प्रेम के सामने शक्ति और धन कुछ भी नहीं है.
सिंहासन बत्तीसी की चौथी कहानी – “अनुरोधवती”
राजा विक्रमादित्य एक दिन अपने दरबार में बैठे थे, तभी एक युवक उनके पास आया और बोला, “महाराज, मैं एक कलाकार हूं और मैं आपके सामने एक नया गाना गाना चाहता हूं.”
राजा विक्रमादित्य ने युवक को गाना गाने के लिए कहा. युवक ने गाना गाया, और राजा विक्रमादित्य को बहुत अच्छा लगा. उन्होंने युवक को एक इनाम दिया और उसे अपने दरबार में रख लिया.
युवक बहुत खुश था. वह राजा विक्रमादित्य के दरबार में एक अच्छा कलाकार बन गया. वह राजा विक्रमादित्य के सामने गाना गाता था, और राजा विक्रमादित्य उसे बहुत पसंद करते थे.
एक दिन, युवक राजा विक्रमादित्य के सामने गा रहा था, तभी राजा विक्रमादित्य को लगा कि युवक गा रहा है, लेकिन उसके गायन में कोई भाव नहीं है. राजा विक्रमादित्य ने युवक से पूछा, “तुम गा रहे हो, लेकिन तुम्हारे गायन में कोई भाव नहीं है. ऐसा क्यों है?”
युवक ने कहा, “महाराज, मैं गा रहा हूं, लेकिन मैं गाना नहीं चाहता हूं. मुझे यहां इसलिए रखा गया है ताकि मैं आपको खुश कर सकूं. मैं एक कलाकार नहीं हूं, मैं एक नौकर हूं.”
राजा विक्रमादित्य को युवक की बात सुनकर बहुत दुख हुआ. उन्होंने युवक को अपने दरबार से निकाल दिया और उसे एक कलाकार बनने के लिए कहा.
युवक बहुत दुखी था, लेकिन वह राजा विक्रमादित्य की बात मानकर चला गया. वह एक कलाकार बन गया और बहुत प्रसिद्ध हुआ. वह राजा विक्रमादित्य को कभी नहीं भूला.
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें अपने काम को प्यार से करना चाहिए. अगर हम अपने काम को प्यार से नहीं करेंगे, तो हम उसमें सफल नहीं हो पाएंगे.
सिंहासन बत्तीसी की 5वीं कहानी – “लीलावती”
एक बार की बात है, विक्रमादित्य नाम का एक राजा था. वह बहुत ही दानवीर और न्यायप्रिय राजा था. एक दिन, एक विद्वान ब्राह्मण राजा के दरबार में आया और बोला, “महाराज, मैं एक महल बनवाना चाहता हूं. क्या आप मुझे धन देंगे?”
राजा ने कहा, “ठीक है, मैं तुम्हें धन दूंगा. लेकिन तुम्हें महल को इस तरह से बनाना होगा कि कोई भी उसमें न रह सके.”
ब्राह्मण ने कहा, “ठीक है, महाराज, मैं ऐसा ही करूंगा.”
ब्राह्मण ने महल बनाना शुरू किया. उसने महल को बहुत ही सुंदर और भव्य बनाया. लेकिन उसने महल में कोई भी दरवाजा या खिड़की नहीं बनाई.
एक दिन, राजा विक्रमादित्य ने ब्राह्मण के महल का निरीक्षण करने का फैसला किया. जब राजा महल में पहुंचे, तो उन्होंने देखा कि महल बहुत ही सुंदर और भव्य है. लेकिन उन्होंने महल में कोई भी दरवाजा या खिड़की नहीं देखी.
राजा ने ब्राह्मण से पूछा, “तुमने महल में दरवाजा या खिड़की क्यों नहीं बनाई?”
ब्राह्मण ने कहा, “महाराज, मैंने महल में दरवाजा या खिड़की इसलिए नहीं बनाई क्योंकि मैं चाहता हूं कि कोई भी उसमें न रह सके.”
राजा ने कहा, “ठीक है, मैं तुम्हारी इच्छा पूरी करूंगा. लेकिन तुम मुझे बताओ कि तुम इस महल का क्या करना चाहते हो?”
ब्राह्मण ने कहा, “महाराज, मैं इस महल को एक धर्मशाला बनाना चाहता हूं. जहां कोई भी आकर रह सके और धर्म का पालन कर सके.”
राजा ने कहा, “ठीक है, मैं तुम्हारी इच्छा पूरी करूंगा. मैं इस महल को एक धर्मशाला बनाऊंगा.”
राजा ने महल को एक धर्मशाला बना दिया. और धर्मशाला में कोई भी आकर रह सकता था और धर्म का पालन कर सकता था.
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें दूसरों के लिए दान करना चाहिए. और हमें दूसरों की मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए.
सिंहासन बत्तीसी की 6वीं कहानी – “रविभामा पुतली”
पहले पांच पुतलियों से राजा भोज को महाराज विक्रमादित्य की दानवीरता, न्यायप्रियता, वीरता, अद्भुत ज्ञान और विनम्रता के बारे में पता चला था. छठी पुतली ने राजा भोज को महाराज विक्रमादित्य की अतिथि-सत्कार की भावना के बारे में बताया.
एक दिन, महाराज विक्रमादित्य अपने महल के बगीचे में टहल रहे थे. उन्होंने देखा कि एक स्त्री और उसका बच्चा घास पर बैठे हैं. वे बहुत दुखी लग रहे थे. महाराज विक्रमादित्य ने उनसे पूछा कि क्या बात है.
स्त्री ने बताया कि वे बहुत गरीब हैं और उन्हें भूख लगी है. महाराज विक्रमादित्य ने उन्हें अपने महल में ले जाया और उन्हें भोजन कराया. उन्होंने स्त्री और बच्चे को एक नौकरी भी दी.
स्त्री और बच्चे बहुत खुश थे. उन्होंने महाराज विक्रमादित्य का आभार व्यक्त किया.
महाराज विक्रमादित्य ने कहा, “यह मेरा सौभाग्य है कि मैं आपकी मदद कर पाया.”
महाराज विक्रमादित्य की अतिथि-सत्कार की भावना से स्त्री और बच्चा बहुत प्रभावित हुए. उन्होंने महाराज विक्रमादित्य को अपना आदर्श मान लिया.
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें अतिथि-सत्कार करना चाहिए. अतिथि-सत्कार एक महान गुण है. अतिथि-सत्कार से हमें पुण्य मिलता है और हमारे जीवन में सुख और समृद्धि आती है.
सिंहासन बत्तीसी की 7वीं कहानी – “कौमुदी”
एक दिन, राजा विक्रमादित्य अपने महल में बैठे थे, तभी उनके पास एक पुतली आई. पुतली बहुत सुंदर थी. राजा विक्रमादित्य ने पुतली से पूछा, “तुम्हारा नाम क्या है?”
पुतली ने कहा, “मेरा नाम कौमुदी है.”
राजा विक्रमादित्य ने कहा, “तुम बहुत सुंदर हो. तुम मेरे महल में रहोगी.”
कौमुदी राजा विक्रमादित्य के महल में रहने लगी. वह राजा विक्रमादित्य की बहुत अच्छी दोस्त बन गई. वह राजा विक्रमादित्य के साथ खेलती थी, राजा विक्रमादित्य के साथ घूमती थी, और राजा विक्रमादित्य के साथ बातें करती थी.
एक दिन, राजा विक्रमादित्य और कौमुदी जंगल में घूम रहे थे. तभी उन्होंने एक पेड़ के नीचे एक आदमी को बैठा देखा. आदमी बहुत बीमार था. राजा विक्रमादित्य ने आदमी को अपने महल में ले जाया और उसे ठीक किया. आदमी बहुत खुश था. उसने राजा विक्रमादित्य और कौमुदी को धन्यवाद दिया.
आदमी एक राजा था. उसने राजा विक्रमादित्य और कौमुदी को अपने राज्य में आमंत्रित किया. राजा विक्रमादित्य और कौमुदी राजा के राज्य में गए. उन्होंने राजा के राज्य में बहुत अच्छा समय बिताया.
राजा विक्रमादित्य और कौमुदी एक दिन राजा के राज्य से वापस अपने महल लौट रहे थे. तभी रास्ते में उन्होंने एक राक्षस को देखा. राक्षस बहुत बड़ा और डरावना था. राजा विक्रमादित्य और कौमुदी बहुत डर गए.
राक्षस ने राजा विक्रमादित्य और कौमुदी को पकड़ लिया और उन्हें अपने महल में ले गया. राक्षस ने राजा विक्रमादित्य और कौमुदी को मारने की धमकी दी. राजा विक्रमादित्य और कौमुदी बहुत डर गए.
कौमुदी ने राजा विक्रमादित्य से कहा, “महाराज, मुझे माफ़ करना. मैं तुम्हारी मदद नहीं कर सकती.”
राजा विक्रमादित्य ने कहा, “तुम्हें माफ़ करना पड़ेगा. तुम मेरे दोस्त हो.”
कौमुदी ने राजा विक्रमादित्य के हाथों में अपना सिर रख दिया. राजा विक्रमादित्य ने कौमुदी को माफ़ कर दिया.
राक्षस ने राजा विक्रमादित्य और कौमुदी को मारने के लिए अपना तलवार उठाया, तभी कौमुदी ने कहा, “राक्षस, मैं तुम्हारी पत्नी बनूंगी.”
राक्षस बहुत खुश हुआ. उसने राजा विक्रमादित्य और कौमुदी को छोड़ दिया. राजा विक्रमादित्य और कौमुदी अपने महल लौट गए.
राजा विक्रमादित्य ने कौमुदी से कहा, “तुमने मेरी जान बचाई. मैं तुम्हारा बहुत आभारी हूं.”
कौमुदी ने कहा, “यह मेरा सौभाग्य है कि मैं आपकी मदद कर सकी.”
राजा विक्रमादित्य और कौमुदी एक-दूसरे से बहुत प्यार करते थे. वे हमेशा एक साथ रहते थे.
सिंहासन बत्तीसी की 8वीं कहानी – “पुष्पवती”
एक दिन राजा विक्रमादित्य के दरबार में एक बढ़ई आया. उसने राजा को एक काठ का घोड़ा दिखाया और कहा कि यह घोड़ा बहुत ही सुंदर है और यह कहीं भी जा सकता है. राजा विक्रमादित्य को घोड़ा बहुत पसंद आया और उन्होंने बढ़ई से 100,000 रुपये में खरीद लिया.
राजा विक्रमादित्य ने घोड़े को अपने महल में रख लिया और उसे बहुत प्यार से रखा. एक दिन राजा विक्रमादित्य घोड़े पर सवार होकर जंगल में घूमने निकले. जब वे घूम रहे थे तो अचानक घोड़ा तेजी से भागने लगा. राजा विक्रमादित्य घोड़े को रोकने की कोशिश करने लगे लेकिन वे असफल रहे. घोड़ा राजा विक्रमादित्य को लेकर जंगल में बहुत दूर चला गया.
राजा विक्रमादित्य बहुत घबरा गए. वे नहीं जानते थे कि वे कहां हैं और कैसे वापस आएंगे. वे बहुत दिनों तक जंगल में भटकते रहे. एक दिन वे एक झोपड़ी के पास पहुंचे. उन्होंने झोपड़ी में एक बूढ़ी औरत को देखा. राजा विक्रमादित्य ने बूढ़ी औरत से मदद मांगी. बूढ़ी औरत ने राजा विक्रमादित्य को अपनी झोपड़ी में ले जाया और उन्हें खाना-पीना दिया.
बूढ़ी औरत ने राजा विक्रमादित्य को बताया कि घोड़ा एक जादूई घोड़ा है और यह राजा विक्रमादित्य को जंगल में भटकाने के लिए भेजा गया था. बूढ़ी औरत ने राजा विक्रमादित्य को एक जादुई फल दिया और कहा कि इस फल को खाने से राजा विक्रमादित्य को जंगल से बाहर निकलने का रास्ता मिल जाएगा.
राजा विक्रमादित्य ने बूढ़ी औरत का फल खाया और उन्हें जंगल से बाहर निकलने का रास्ता मिल गया. राजा विक्रमादित्य बहुत खुश हुए और उन्होंने बूढ़ी औरत को धन्यवाद दिया. राजा विक्रमादित्य वापस अपने महल आ गए और उन्होंने घोड़े को जंगल में छोड़ दिया.
राजा विक्रमादित्य ने इस घटना से सीखा कि हमें किसी भी चीज़ पर भरोसा नहीं करना चाहिए. हमें हमेशा सावधान रहना चाहिए और किसी भी चीज़ को प्राप्त करने के लिए धैर्य रखना चाहिए.
सिंहासन बत्तीसी की 9वीं कहानी – “राजा विक्रमादित्य और 32 देवियां”
एक दिन, राजा विक्रमादित्य जंगल में घूम रहे थे. रास्ते में उन्होंने एक पेड़ के नीचे एक कुटिया देखी. उन्होंने कुटिया में जाकर देखा तो एक बूढ़ी औरत बैठी थी.
राजा विक्रमादित्य ने बूढ़ी औरत से पूछा, “यह कुटिया किसकी है?”
बूढ़ी औरत ने कहा, “यह मेरी कुटिया है.”
राजा विक्रमादित्य ने पूछा, “तुम्हारे साथ कोई और है क्या?”
बूढ़ी औरत ने कहा, “नहीं, मेरे साथ कोई नहीं है.”
राजा विक्रमादित्य ने कहा, “तुम अकेली क्यों रहती हो?”
बूढ़ी औरत ने कहा, “मैं एक देवी हूं. मैं अपने पति के साथ रहती थी, लेकिन वह मर गया है. अब मैं अकेली हूं.”
राजा विक्रमादित्य ने कहा, “मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूं.”
बूढ़ी औरत ने कहा, “तुम मेरी मदद कैसे कर सकते हो?”
राजा विक्रमादित्य ने कहा, “तुम मेरे साथ चल सकती हो. मैं तुम्हें अपने महल में रखूंगा और तुम्हारी देखभाल करूंगा.”
बूढ़ी औरत ने कहा, “मुझे तुम्हारी मदद स्वीकार है.”
राजा विक्रमादित्य ने बूढ़ी औरत को अपने महल में ले जाया और उसकी देखभाल की. बूढ़ी औरत ने राजा विक्रमादित्य को बताया कि वह एक देवी है और उसके पति भी एक देवता थे. वे दोनों एक देवलोक में रहते थे, लेकिन एक दिन एक राक्षस ने उनके देवलोक पर हमला कर दिया और उनके पति को मार डाला. बूढ़ी औरत अपने पति की मृत्यु से बहुत दुखी थी और वह अपने देवलोक नहीं लौटना चाहती थी. वह राजा विक्रमादित्य के साथ रहना चाहती थी.
राजा विक्रमादित्य ने बूढ़ी औरत की बात मान ली और उसे अपने महल में रख लिया. बूढ़ी औरत राजा विक्रमादित्य के साथ बहुत खुश थी. वह राजा विक्रमादित्य की देखभाल करती थी और राजा विक्रमादित्य भी उसकी देखभाल करते थे.
एक दिन, बूढ़ी औरत ने राजा विक्रमादित्य से कहा, “मैं तुम्हें एक वरदान देना चाहती हूं.”
राजा विक्रमादित्य ने कहा, “तुम मुझे क्या वरदान देना चाहती हो?”
बूढ़ी औरत ने कहा, “मैं तुम्हें 32 देवियां देना चाहती हूं.”
राजा विक्रमादित्य को बहुत खुशी हुई. उन्होंने बूढ़ी औरत से कहा, “मुझे बहुत खुशी है कि तुम मुझे 32 देवियां दे रही हो.”
बूढ़ी औरत ने 32 देवियों को बुलाया और उन्हें राजा विक्रमादित्य के सामने खड़ा कर दिया. राजा विक्रमादित्य ने 32 देवियों को देखा तो वह बहुत खुश हुए. उन्होंने बूढ़ी औरत से कहा, “तुम्हारी कृपा के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद.”
बूढ़ी औरत ने कहा, “तुम्हारा स्वागत है.”
बूढ़ी औरत ने राजा विक्रमादित्य से कहा, “अब मैं जा रही हूं. मुझे अपने देवलोक लौटना है.”
राजा विक्रमादित्य ने बूढ़ी औरत को विदा किया. बूढ़ी औरत ने राजा विक्रमादित्य को आशीर्वाद दिया और अपने देवलोक लौट गई.
राजा विक्रमादित्य 32 देवियों के साथ बहुत खुश थे. उन्होंने 32 देवियों से शादी कर ली और वे सभी एक साथ बहुत खुशी से रहने लगे.
सिंहासन बत्तीसी की 10वीं कहानी – “प्रभावती”
राजा विक्रमादित्य एक दिन शिकार खेलते-खेलते अपने सैनिकों की टोली से काफी आगे निकलकर जंगल में भटक गए. उन्होंने इधर-उधर काफी खोजा, पर उनके सैनिक उन्हें नज़र नहीं आए. उसी समय उन्होंने देखा कि एक सुदर्शन युवक एक पेड़ पर चढ़ा और एक शाखा से उसने एक रस्सी बांधी. रस्सी में फंदा बना था उस फन्दे में अपना सर डालकर झूल गया.
राजा विक्रमादित्य ने युवक को नीचे से सहारा देकर फंदा उसके गले से निकाला तथा उसे समझाया कि आत्महत्या कायरता है और अपराध भी है. इस अपराध के लिए राजा होने के नाते वे उसे दण्डित भी कर सकते हैं.
युवक ने कहा, “महाराज, मैं आत्महत्या नहीं कर रहा था. मैं एक गरीब किसान का पुत्र हूं. मेरे पिता की मृत्यु हो गई है और मेरी मां और बहन भूख से मर रही हैं. मैं उनका भरण-पोषण करने के लिए कुछ भी करने को तैयार हूं.”
राजा विक्रमादित्य ने युवक को अपने दरबार में ले जाकर उसे एक नौकरी दी. युवक ने अपनी मेहनत और लगन से नौकरी में बहुत तरक्की की. वह राजा विक्रमादित्य का विश्वासपात्र बन गया.
एक दिन, राजा विक्रमादित्य ने युवक से कहा, “मैं तुम्हें एक राजकुमारी से शादी करने का प्रस्ताव देना चाहता हूं.”
युवक को बहुत खुशी हुई. उसने राजकुमारी से शादी कर ली और वे दोनों बहुत खुशी-खुशी रहने लगे.
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें कभी भी हार नहीं माननी चाहिए. अगर हम मेहनत और लगन से काम करेंगे, तो हम अपने जीवन में कुछ भी हासिल कर सकते हैं.
सिंहासन बत्तीसी की 11वीं कहानी – “त्रिलोचना”
एक बार, राजा भोज सिंहासन पर बैठने के लिए दरबार में पहुंचे. इस बार, सिंहासन की 11वीं पुतली त्रिलोचना उन्हें रोकती है. वह कहती है कि राजा भोज सिंहासन के योग्य नहीं हैं, क्योंकि वे अहंकारी और स्वार्थी हैं.
राजा भोज को त्रिलोचना की बात सुनकर बहुत गुस्सा आता है. वह कहता है कि वह एक महान राजा है और वह सिंहासन का हकदार है.
त्रिलोचना कहती है कि राजा भोज का शासन लोगों पर अत्याचार है. वह कहती है कि राजा भोज ने अपने प्रजा को शोषित किया है और उनके धन को लूट लिया है.
राजा भोज त्रिलोचना की बातों को सुनकर चुप हो जाता है. उसे अहसास होता है कि वह गलत है. वह त्रिलोचना से माफी मांगता है और कहता है कि वह बदल जाएगा.
त्रिलोचना राजा भोज को माफ कर देती है और उसे सिंहासन पर बैठने देती है. राजा भोज एक अच्छा राजा बन जाता है और वह अपने प्रजा का हित करता है.
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें अहंकार और स्वार्थ से दूर रहना चाहिए. हमें दूसरों के प्रति दयालु और उदार होना चाहिए. हमें अपने प्रजा का हित करना चाहिए और उन्हें खुश रखना चाहिए.
सिंहासन बत्तीसी की 12वीं कहानी – “पद्मावती”
एक बार राजा विक्रमादित्य एक जंगल में घूम रहे थे. तभी उन्होंने एक सुंदर लड़की को देखा. लड़की एक पेड़ के नीचे बैठी रो रही थी. राजा विक्रमादित्य ने लड़की से पूछा कि वह क्यों रो रही है. लड़की ने बताया कि वह एक राक्षस की कैद में थी. राक्षस ने उसे मारने की धमकी दी थी.
राजा विक्रमादित्य ने लड़की की मदद करने का फैसला किया. उन्होंने अपने तलवार से राक्षस को मार डाला. लड़की बहुत खुश हुई. उसने राजा विक्रमादित्य से शादी करने का प्रस्ताव रखा. राजा विक्रमादित्य ने लड़की के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया. उन्होंने लड़की से शादी कर ली और उसके साथ महल में रहने लगे.
राजा विक्रमादित्य और लड़की बहुत खुश थे. उन्होंने एक बेटा और एक बेटी को जन्म दिया. राजा विक्रमादित्य ने लड़की का नाम पद्मावती रखा. पद्मावती एक बहुत ही सुंदर और गुणवान महिला थी. वह राजा विक्रमादित्य की बहुत प्यारी थी.
एक दिन, एक राजा पद्मावती से शादी करना चाहता था. उसने राजा विक्रमादित्य को एक चुनौती दी. उसने कहा कि अगर राजा विक्रमादित्य उसे एक ऐसा घोड़ा लाकर दे सकते हैं जो उड़ सके, तो वह पद्मावती से शादी कर लेगा.
राजा विक्रमादित्य ने चुनौती स्वीकार कर ली. उन्होंने अपने मंत्री को एक ऐसा घोड़ा ढूंढने के लिए भेजा जो उड़ सके. मंत्री ने एक ऐसा घोड़ा ढूंढ लिया जो उड़ सकता था. उन्होंने घोड़े को राजा विक्रमादित्य को दे दिया.
राजा विक्रमादित्य ने घोड़े को उस राजा को दे दिया. उस राजा ने घोड़े को देखकर बहुत खुश हुआ. उसने राजा विक्रमादित्य से पद्मावती से शादी करने की बात कही. राजा विक्रमादित्य ने राजा की बात मान ली. उन्होंने पद्मावती को उस राजा को दे दिया.
पद्मावती बहुत दुखी हुई. वह राजा विक्रमादित्य से बहुत प्यार करती थी. वह नहीं चाहती थी कि वह उससे दूर जाए. लेकिन वह राजा की बात नहीं मान सकती थी. उसे उस राजा के साथ जाना पड़ा.
राजा विक्रमादित्य भी बहुत दुखी थे. उन्होंने पद्मावती को बहुत प्यार किया था. लेकिन वह उसे वापस नहीं पा सकते थे. उन्होंने पद्मावती को याद करते हुए अपना जीवन बिताया.
सिंहासन बत्तीसी की 13वीं कहानी – “सुनयना पुतली”
राजा विक्रमादित्य एक दिन जंगल में घूम रहे थे, तभी उन्होंने एक सुंदर पुतली को देखा. पुतली सो रही थी. राजा विक्रमादित्य ने पुतली को उठाया और अपने महल में ले गए. उन्होंने पुतली का नाम सुनयना रखा.
सुनयना बहुत सुंदर थी. राजा विक्रमादित्य उसे बहुत प्यार करते थे. उन्होंने सुनयना को एक महल में रहने के लिए दिया और उसे बहुत सारे गहने और कपड़े दिए. सुनयना बहुत खुश थी. वह राजा विक्रमादित्य से बहुत प्यार करती थी.
एक दिन, राजा विक्रमादित्य को एक युद्ध में जाना पड़ा. उन्होंने सुनयना को अपने महल में छोड़ दिया और कहा कि वह जल्दी ही वापस आ जाएंगे. सुनयना बहुत दुखी थी. वह राजा विक्रमादित्य को बहुत याद करती थी.
कुछ दिनों बाद, एक जादूगर राजा विक्रमादित्य के महल में आया. उसने सुनयना को देखकर उसे अपने साथ ले जाने की कोशिश की. सुनयना ने मना किया, लेकिन जादूगर ने उसे जबरदस्ती अपने साथ ले गया.
सुनयना बहुत दुखी थी. वह राजा विक्रमादित्य से मिलने के लिए बहुत तरस रही थी. एक दिन, सुनयना ने भागने का फैसला किया. वह जादूगर के महल से भाग गई और राजा विक्रमादित्य के महल में आ गई.
राजा विक्रमादित्य सुनयना को देखकर बहुत खुश हुए. उन्होंने सुनयना को गले लगा लिया और कहा कि वह उसे कभी नहीं छोड़ेंगे. सुनयना भी राजा विक्रमादित्य से बहुत खुश थी. वह जानती थी कि वह अब सुरक्षित है.
राजा विक्रमादित्य ने जादूगर को पकड़ लिया और उसे जेल में डाल दिया. सुनयना और राजा विक्रमादित्य फिर से खुशी-खुशी रहने लगे.
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि प्यार और विश्वास ही सबसे शक्तिशाली शक्तियां हैं.
सिंहासन बत्तीसी की 14वीं कहानी – “कीर्तिमती”
एक बार राजा विक्रमादित्य एक महाभोज का आयोजन किया. उस भोज में असंख्य विद्धान, ब्राह्मण, व्यापारी तथा दरबारी आमंत्रित थे. भोज के मध्य में इस बात पर चर्चा चली कि संसार में सबसे बड़ा दानी कौन है? सभी ने एक स्वर से विक्रमादित्य को दुनिया का सर्वश्रेष्ठ दानवीर घोषित किया. राजा विक्रमादित्य लोगों के भाव देख रहे थे, तभी उनकी नज़र एक ब्राह्मण पर पड़ी जो अपनी राय नहीं दे रहा था. लेकिन उसके चेहरे के भाव से स्पष्ट प्रतीत होता था कि वह सभी लोगों के विचार से सहमत नहीं है.
राजा विक्रमादित्य ने ब्राह्मण से पूछा, “तुम क्यों चुप हो? तुम क्या सोचते हो?”
ब्राह्मण ने कहा, “महाराज, मैं सबसे बड़ा दानी नहीं हूं. संसार में सबसे बड़ा दानी मेरे मित्र कीर्तिमती है.”
राजा विक्रमादित्य ने कहा, “कीर्तिमती? वह कौन है?”
ब्राह्मण ने कहा, “कीर्तिमती एक गरीब किसान की बेटी है. वह बहुत ही दयालु और उदार है. वह हमेशा दूसरों की मदद के लिए तैयार रहती है. वह अपना सारा धन दूसरों को दे देती है. वह कभी भी अपने लिए कुछ नहीं रखती है.”
राजा विक्रमादित्य को कीर्तिमती के बारे में सुनकर बहुत आश्चर्य हुआ. उन्होंने ब्राह्मण से कहा, “मैं कीर्तिमती से मिलना चाहता हूं.”
ब्राह्मण ने कहा, “मैं उसे यहां लेकर आऊंगा.”
ब्राह्मण ने कीर्तिमती को राजा विक्रमादित्य से मिलने के लिए बुलाया. कीर्तिमती राजा विक्रमादित्य से मिलने के लिए बहुत खुश थी. उसने राजा विक्रमादित्य को बताया कि वह हमेशा दूसरों की मदद के लिए तैयार रहती है. वह अपना सारा धन दूसरों को दे देती है. वह कभी भी अपने लिए कुछ नहीं रखती है.
राजा विक्रमादित्य को कीर्तिमती की बातें सुनकर बहुत प्रभावित हुआ. उन्होंने कीर्तिमती को सबसे बड़ा दानी घोषित किया और उसे एक इनाम दिया.
कीर्तिमती बहुत खुश थी. उसने राजा विक्रमादित्य को धन्यवाद दिया और कहा कि वह अपना धन दूसरों की मदद के लिए इस्तेमाल करेगी.
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें दूसरों की मदद करनी चाहिए. हमें अपने धन का उपयोग दूसरों की भलाई के लिए करना चाहिए.
सिंहासन बत्तीसी की 15वीं कहानी – “सत्यवती”
राजा विक्रमादित्य के दरबार में एक दिन एक ब्राह्मण आया. उसने राजा से कहा, “महाराज, मैं एक गरीब ब्राह्मण हूं. मेरे पास कुछ भी नहीं है. कृपया मुझे कुछ धन दें ताकि मैं अपना जीवन यापन कर सकूं.”
राजा विक्रमादित्य ने ब्राह्मण को चार रत्न दिए. ब्राह्मण बहुत खुश हुआ. उसने राजा को धन्यवाद दिया और चला गया.
ब्राह्मण ने अपने घर जाकर अपने परिवार को रत्न दिखाए. उसके परिवार के लोग बहुत खुश हुए. उन्होंने ब्राह्मण को बधाई दी.
ब्राह्मण ने रत्नों को बेचकर कुछ धन प्राप्त किया. उसने उस धन से अपना घर बना लिया. उसने अपने बच्चों की शादी कर दी. वह और उसके परिवार बहुत खुशी से रहने लगे.
एक दिन, ब्राह्मण राजा विक्रमादित्य के दरबार में फिर से आया. उसने राजा से कहा, “महाराज, आपने मुझे जो रत्न दिए थे, वे मेरे लिए बहुत फायदेमंद रहे हैं. मैं आपका बहुत आभारी हूं.”
राजा विक्रमादित्य ने ब्राह्मण को कहा, “तुम धन्यवाद देने की बात मत करो. मैं खुश हूं कि मैंने तुम्हें मदद की है.”
ब्राह्मण ने राजा को प्रणाम किया और चला गया.
ब्राह्मण की कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि दान करना एक पुण्य का काम है. दान करने से हमें सुख और समृद्धि प्राप्त होती है.
सिंहासन बत्तीसी की 16वीं कहानी – “विद्यावती”
एक बार राजा विक्रमादित्य अपने राज्य में घूम रहे थे. तभी उन्होंने एक ब्राह्मण दंपति को देखा जो बहुत दुखी थे. राजा ने ब्राह्मण दंपति से पूछा कि वे क्यों दुखी हैं. ब्राह्मण दंपति ने बताया कि उनकी कोई संतान नहीं है. राजा विक्रमादित्य ने ब्राह्मण दंपति को सांत्वना दी और कहा कि वे चिंता न करें, वे उनकी मदद करेंगे.
राजा विक्रमादित्य ने अपने दरबार के सबसे अच्छे वैद्य को बुलाया और ब्राह्मण दंपति के इलाज के लिए कहा. वैद्य ने ब्राह्मण दंपति का इलाज किया, और कुछ ही दिनों में वे गर्भवती हो गईं.
कुछ समय बाद, ब्राह्मण दंपति के एक पुत्र हुआ. राजा विक्रमादित्य ने ब्राह्मण दंपति को बहुत खुशी दी और उन्हें एक उपहार दिया.
ब्राह्मण दंपति बहुत खुश थे. उन्होंने राजा विक्रमादित्य का बहुत धन्यवाद किया.
राजा विक्रमादित्य ने ब्राह्मण दंपति के पुत्र का नाम विद्यावती रखा. विद्यावती एक बहुत ही बुद्धिमान और सुंदर लड़की थी. वह राजा विक्रमादित्य की सबसे प्यारी संतान थी.
विद्यावती ने राजा विक्रमादित्य से शिक्षा प्राप्त की. वह एक विद्वान महिला बन गई. वह राजा विक्रमादित्य के राज्य में बहुत सम्मानित थी.
एक दिन, विद्यावती ने राजा विक्रमादित्य से कहा कि वह एक भिक्षुनी बनना चाहती है. राजा विक्रमादित्य को विद्यावती का यह फैसला सुनकर बहुत दुख हुआ, लेकिन उन्होंने विद्यावती की इच्छा का सम्मान किया.
विद्यावती एक भिक्षुनी बन गई और वह बहुत धार्मिक जीवन जीती थी. वह एक महान संत बन गई और लोगों को धर्म का ज्ञान देती थी.
विद्यावती का जीवन एक प्रेरणा है. वह हमें सिखाती है कि हमें अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कड़ी मेहनत करनी चाहिए और कभी हार नहीं माननी चाहिए.
सिंहासन बत्तीसी की 17वीं कहानी – “सुंदरवती”
राजा विक्रमादित्य एक दिन जंगल में घूम रहे थे, तभी उन्होंने एक सुंदर कन्या को देखा. कन्या बहुत ही सुंदर थी, और राजा विक्रमादित्य उस पर मोहित हो गए. उन्होंने कन्या को अपने महल में ले जाया और उससे शादी कर ली.
कन्या का नाम सुंदरवती था. सुंदरवती बहुत ही सुंदर और गुणवान थी. वह राजा विक्रमादित्य से बहुत प्यार करती थी, और राजा विक्रमादित्य भी उससे बहुत प्यार करते थे.
एक दिन, राजा विक्रमादित्य को एक युद्ध में जाना पड़ा. राजा विक्रमादित्य ने सुंदरवती से कहा कि वह जल्दी ही वापस आ जाएगा. सुंदरवती ने राजा विक्रमादित्य को विदा किया और कहा कि वह उसका इंतजार करेगी.
राजा विक्रमादित्य युद्ध में चले गए. युद्ध बहुत लंबा चला, और राजा विक्रमादित्य को बहुत समय तक लौटने में देर हो गई. सुंदरवती बहुत इंतजार करती रही, लेकिन राजा विक्रमादित्य वापस नहीं आए.
सुंदरवती बहुत दुखी हो गई. वह राजा विक्रमादित्य का इंतजार करती रही, लेकिन राजा विक्रमादित्य कभी वापस नहीं आए. सुंदरवती ने अंत में अपना जीवन त्याग दिया.
राजा विक्रमादित्य जब युद्ध से वापस आए तो सुंदरवती को मरते हुए पाया. राजा विक्रमादित्य को बहुत दुख हुआ. उन्होंने सुंदरवती को मरने नहीं दिया, और उन्होंने उसे जीवित कर दिया.
राजा विक्रमादित्य और सुंदरवती बहुत खुश थे. उन्होंने एक साथ अपना जीवन बिताया और बहुत सुख से रहे.
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि प्यार ही सबसे बड़ा बल है. प्यार से सभी दुखों को दूर किया जा सकता है.
सिंहासन बत्तीसी की 18वीं कहानी – “तारामती पुतली”
राजा विक्रमादित्य एक दिन अपने दरबार में बैठे थे, तभी एक पुतली उनके सामने आ खड़ी हुई. पुतली ने कहा, “महाराज, मैं तारामती हूं. मैं आपके सिंहासन पर बैठना चाहती हूं.”
राजा विक्रमादित्य ने पुतली को सिंहासन पर बैठने के लिए कहा. पुतली सिंहासन पर बैठी और बोली, “महाराज, मैं आपको एक कहानी सुनाना चाहती हूं.”
पुतली ने कहा, “एक समय की बात है, एक राजकुमार था. राजकुमार बहुत अच्छा शिकारी था. एक दिन, राजकुमार शिकार खेल रहा था, तभी उसे एक भालू दिखाई दिया. राजकुमार ने भालू का पीछा किया और उसे मार डाला.
“राजकुमार भालू का मांस लेकर अपने महल में लौट आया. राजकुमार की मां ने भालू का मांस खाया और उसे जहर लग गया. राजकुमार की मां की मृत्यु हो गई. राजकुमार बहुत दुखी हो गया. उसने जंगल में जाकर तपस्या करने का निश्चय किया.
“राजकुमार जंगल में गया और तपस्या करने लगा. कुछ दिनों बाद, एक साधु राजकुमार के पास आए. साधु ने राजकुमार को बताया कि उसकी मां की मृत्यु एक राक्षसी स्त्री ने की है. साधु ने राजकुमार को राक्षसी स्त्री को मारने का मंत्र दिया.
“राजकुमार ने साधु के दिए मंत्र का प्रयोग किया और राक्षसी स्त्री को मार डाला. राक्षसी स्त्री के मरने से राजकुमार की मां की आत्मा को शांति मिल गई. राजकुमार की मां स्वर्गलोक चली गई.
“राजकुमार बहुत खुश था. उसने अपने राज्य लौटकर अपनी प्रजा का शासन करना शुरू कर दिया. राजकुमार ने अपनी प्रजा का बहुत अच्छे से शासन किया. राजकुमार की प्रजा बहुत खुश थी.
“राजकुमार ने अपनी प्रजा के लिए बहुत कुछ किया. उसने एक नया महल बनवाया, एक नया मंदिर बनवाया, और एक नया बाग बनवाया. राजकुमार ने अपनी प्रजा के लिए बहुत सारे स्कूल भी बनवाए.
“राजकुमार बहुत धार्मिक भी था. वह हर दिन पूजा पाठ करता था और जरूरतमंद लोगों की मदद करता था. राजकुमार बहुत दयालु भी था. वह हमेशा दूसरों की मदद करने के लिए तैयार रहता था.
“राजकुमार एक बहुत अच्छा राजा था. वह अपनी प्रजा का बहुत प्यार करता था और उसकी प्रजा भी उसे बहुत प्यार करती थी. राजकुमार का राज्य बहुत समृद्ध और खुशहाल था.”
पुतली की कहानी सुनकर राजा विक्रमादित्य बहुत खुश हुए. उन्होंने पुतली को आशीर्वाद दिया और उसे अपने दरबार में रहने के लिए कहा. पुतली राजा विक्रमादित्य के दरबार में रहने लगी और राजा विक्रमादित्य की बहुत अच्छी सेवा करने लगी.
सिंहासन बत्तीसी की 19वीं कहानी – “सिंहासन की सजावट”
“सिंहासन बत्तीसी” की बीसवीं कहानी का नाम है “सिंहासन की सजावट”। इस कहानी में राजा विक्रमादित्य की सिंहासन की सजावट के बारे में बताया गया है। यहाँ पर हम इस कहानी का संक्षेप में वर्णन कर रहे हैं।
विक्रमादित्य के राज्य के राजमहल में एक सुंदर सा सिंहासन सजाकर रखा गया था। इस सिंहासन की सजावट को देखकर सभी लोग आश्चर्यचकित होते थे। एक दिन राजमहल में एक गरीब किसान आकर राजा से बिना किसी की देख-रेख के उस सिंहासन पर बैठ गया। उसने बिना किसी अहंकार या दर्शावे के सिंहासन पर नाममात्र बैठ जाने की निश्चय कर ली थी।
राजा विक्रमादित्य और उनके सभी मंत्रियों को इस गरीब किसान के बारे में पता चलते ही वे बहुत हैरान हो गए। सभी लोग इस अनोखे और निर्भय साहसिकता के सामने चकित हो गए। राजा भोज ने उस किसान से उनके साहसिकता की प्रशंसा की और उन्हें विशेष सम्मान दिया।
किसान ने बताया कि वह एक साधारण किसान है और उसे राजा के गुणों के बारे में बहुत सुना था। उसने सोचा कि वह भी अपने बच्चों को राजा की शिक्षा देना चाहता है, इसलिए वह राजा के सिंहासन पर बैठ गया था।
राजा विक्रमादित्य ने उस किसान को सिंहासन से उठवाकर खास उपहारों के साथ उन्हें विदाई दी। राजा ने उसके साहस और समर्पण को सराहा और उसे धन्यवाद दिया। उस किसान की यह साहसिकता और सजगता राजमहल के सभी लोगों के दिलों में एक अद्भुत चित्र छोड़ गई। इससे उन्हें सिख मिला कि व्यक्तित्व में बदलाव के बिना यदि व्यक्ति सही रास्ते पर चलता है, तो उसकी साहसिकता और निर्भयता ही उसको सच्चे मायने में महान बनाती है।
इस रूप में, सिंहासन की सजावट नामक यह कहानी एक अद्भुत सन्दर्भ में राजा विक्रमादित्य के नेतृत्व में व्यक्तित्व और अहंकार के मूल्य को संवेदनशील रूप से प्रशंसा करती है।
सिंहासन बत्तीसी की 20वीं कहानी – “ज्ञानवती”
एक समय की बात है, एक राजा था जिसका नाम विक्रमादित्य था. वह एक बहुत ही न्यायप्रिय और बुद्धिमान राजा था. एक दिन, राजा विक्रमादित्य जंगल में घूम रहे थे, तभी उन्होंने एक पुतली को देखा. पुतली बहुत ही सुंदर थी. राजा विक्रमादित्य ने पुतली को अपने महल में ले आए और उसे ज्ञानवती नाम दिया.
ज्ञानवती बहुत ही बुद्धिमान और सुंदर थी. वह राजा विक्रमादित्य की बहुत अच्छी मित्र बन गई. एक दिन, राजा विक्रमादित्य ने ज्ञानवती से कहा, “मैं तुम्हें एक परीक्षा देना चाहता हूं. अगर तुम इस परीक्षा में पास हो जाती हो, तो मैं तुम्हें अपनी पत्नी बनाऊंगा.”
ज्ञानवती ने राजा विक्रमादित्य से कहा, “मैं परीक्षा देने के लिए तैयार हूं.”
राजा विक्रमादित्य ने ज्ञानवती को एक प्रश्न पूछा, “संसार में सबसे शक्तिशाली चीज क्या है?”
ज्ञानवती ने कुछ देर सोचा और फिर कहा, “संसार में सबसे शक्तिशाली चीज ज्ञान है.”
राजा विक्रमादित्य को ज्ञानवती का उत्तर बहुत अच्छा लगा. उन्होंने ज्ञानवती से कहा, “तुम परीक्षा में पास हो गई हो. अब तुम मेरी पत्नी बनोगी.”
ज्ञानवती और राजा विक्रमादित्य बहुत खुश थे. उन्होंने एक भव्य विवाह समारोह किया. ज्ञानवती और राजा विक्रमादित्य ने बहुत सुख से जीवन बिताया.
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि ज्ञान सबसे शक्तिशाली चीज है. ज्ञान से हम अपने जीवन में हर चीज पा सकते हैं.
सिंहासन बत्तीसी की 21वीं कहानी – “चन्द्रज्योति की कहानी”
एक बार की बात है, एक राजा था जिसकी एक रानी थी। रानी बहुत ही सुंदर थी और उसे पूरे राज्य में जाना जाता था. एक दिन, एक जादूगर राजा के महल में आया और उसने राजा को बताया कि वह रानी को एक खूबसूरत फूल में बदल देगा. राजा ने जादूगर की बात मान ली और वह रानी को एक खूबसूरत फूल में बदल गया.
राजा बहुत दुखी हो गया और उसने फूल को महल में रख दिया. वह रोजाना फूल को देखता था और उससे बात करता था. एक दिन, एक राजकुमार महल में आया और उसने फूल को देखा. वह फूल से इतना मोहित हो गया कि उसने राजा से फूल को मांग लिया. राजा ने राजकुमार को फूल दे दिया और राजकुमार ने फूल को अपने महल में ले गया.
राजकुमार ने फूल को एक गमले में लगाया और उसने उसे बहुत प्यार से पानी दिया. कुछ दिनों बाद, फूल से एक खूबसूरत स्त्री निकली. स्त्री बहुत ही सुंदर थी और वह राजकुमार से शादी करना चाहती थी. राजकुमार ने स्त्री से शादी कर ली और वे दोनों बहुत खुशी-खुशी रहने लगे.
एक दिन, राजकुमार की मां महल में आई और उसने स्त्री को देखा. राजकुमार की मां बहुत नाराज हुई और उसने स्त्री को महल से निकाल दिया. स्त्री बहुत दुखी हो गई और वह जंगल में चली गई. जंगल में, स्त्री ने एक झोपड़ी बनाई और उसने वहीं रहने लगा.
एक दिन, एक राजा जंगल में शिकार कर रहा था. राजा ने झोपड़ी देखी और उसने स्त्री से बात की. राजा स्त्री से इतना मोहित हो गया कि उसने स्त्री से शादी कर ली. राजा और स्त्री दोनों बहुत खुशी-खुशी रहने लगे.
कुछ समय बाद, स्त्री को एक बच्चा हुआ. बच्चा बहुत ही सुंदर था और राजा और स्त्री उसे बहुत प्यार करते थे. एक दिन, स्त्री का पति मर गया. स्त्री बहुत दुखी हो गई और उसने बच्चे को लेकर महल छोड़ दिया. स्त्री जंगल में चली गई और उसने वहीं रहने लगा.
जंगल में, स्त्री ने एक झोपड़ी बनाई और उसने बच्चे को पालने लगा. स्त्री ने बच्चे को बहुत प्यार से पाला और बच्चा बड़ा होकर एक राजा बना. राजा ने अपनी मां को महल बुलाया और वे दोनों बहुत खुशी-खुशी रहने लगे.
स्त्री की कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि प्यार सबसे शक्तिशाली चीज है. प्यार से हर समस्या का हल हो सकता है.
सिंहासन बत्तीसी की 22वीं कहानी – “अनुरोधवती”
राजा विक्रमादित्य एक दिन अपने दरबार में बैठे थे, तभी एक युवक उनके पास आया और बोला, “महाराज, मैं एक कलाकार हूं और मैं आपके सामने एक नया गाना गाना चाहता हूं.”
राजा विक्रमादित्य ने युवक को गाना गाने के लिए कहा. युवक ने गाना गाया, और राजा विक्रमादित्य को बहुत अच्छा लगा. उन्होंने युवक को एक इनाम दिया और उसे अपने दरबार में रख लिया.
युवक बहुत खुश था. वह राजा विक्रमादित्य के दरबार में एक अच्छा कलाकार बन गया. वह राजा विक्रमादित्य के सामने गाना गाता था, और राजा विक्रमादित्य उसे बहुत पसंद करते थे.
एक दिन, युवक राजा विक्रमादित्य के सामने गा रहा था, तभी राजा विक्रमादित्य को लगा कि युवक गा रहा है, लेकिन उसके गायन में कोई भाव नहीं है. राजा विक्रमादित्य ने युवक से पूछा, “तुम गा रहे हो, लेकिन तुम्हारे गायन में कोई भाव नहीं है. ऐसा क्यों है?”
युवक ने कहा, “महाराज, मैं गा रहा हूं, लेकिन मैं गाना नहीं चाहता हूं. मुझे यहां इसलिए रखा गया है ताकि मैं आपको खुश कर सकूं. मैं एक कलाकार नहीं हूं, मैं एक नौकर हूं.”
राजा विक्रमादित्य को युवक की बात सुनकर बहुत दुख हुआ. उन्होंने युवक को अपने दरबार से निकाल दिया और उसे एक कलाकार बनने के लिए कहा.
युवक बहुत दुखी था, लेकिन वह राजा विक्रमादित्य की बात मानकर चला गया. वह एक कलाकार बन गया और बहुत प्रसिद्ध हुआ. वह राजा विक्रमादित्य को कभी नहीं भूला.
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें अपने काम को प्यार से करना चाहिए. अगर हम अपने काम को प्यार से नहीं करेंगे, तो हम उसमें सफल नहीं हो पाएंगे.
सिंहासन बत्तीसी की 23वीं कहानी – “धर्मवती”
एक बार की बात है, राजा विक्रमादित्य के दरबार में एक बहस छिड़ गई कि मनुष्य जन्म से बड़ा होता है या कर्म से. एक पक्ष का मानना था कि मनुष्य जन्म से बड़ा होता है, क्योंकि पूर्वजन्मों का कर्म ही होता है, जो मनुष्य जन्म मिलता है, वहीं संस्कार आनुवंशिक होते हैं. जैसे राजा का बेटा राजाओं की तरह व्यवहार करता है. वहीं, दूसरे गुट का मानना था कि कर्म ही सबसे ऊपर है. इसलिए, अच्छे परिवार में पैदा हुए व्यक्ति भी बुरी संगत में पड़ सकते हैं.
राजा विक्रमादित्य ने सोचा कि यह बहस बहुत लंबी चलेगी, इसलिए उन्होंने एक निर्णय लेने का फैसला किया. उन्होंने कहा कि जो भी व्यक्ति एक दिन में एक लाख रुपये दान करेगा, उसे ही सही माना जाएगा.
दूसरे दिन, एक भिखारी राजा के दरबार में आया और बोला, “महाराज, मैं एक भिखारी हूं और मैं एक दिन में एक लाख रुपये दान कर सकता हूं.”
राजा विक्रमादित्य ने भिखारी को एक लाख रुपये दान करने के लिए कहा. भिखारी ने राजा के सामने एक लाख रुपये का दान किया.
राजा विक्रमादित्य ने भिखारी से पूछा कि तुम एक दिन में एक लाख रुपये कैसे दान कर सकते हो.
भिखारी ने कहा, “महाराज, मैं एक धर्मात्मा व्यक्ति हूं और मैं हमेशा दूसरों की मदद करता हूं. मैं हमेशा गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन, कपड़े और आश्रय देता हूं. मैं हमेशा मंदिरों और मस्जिदों में दान करता हूं. मैं हमेशा जरूरतमंदों के लिए मदद करता हूं. इसलिए, मैं एक दिन में एक लाख रुपये दान कर सकता हूं.”
राजा विक्रमादित्य को भिखारी की बात सुनकर बहुत खुशी हुई. उन्होंने भिखारी को एक इनाम दिया और उसे अपने दरबार में रख लिया.
राजा विक्रमादित्य ने लोगों को बताया कि भिखारी ही सही है और मनुष्य कर्म से बड़ा होता है.
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि मनुष्य कर्म से बड़ा होता है. अगर हम अच्छे कर्म करेंगे, तो हम अच्छे बनेंगे. अगर हम बुरे कर्म करेंगे, तो हम बुरे बनेंगे.
निष्कर्ष (Conclusion)
सिंहासन बत्तीसी एक भारतीय लोककथा है. यह कहानी राजा विक्रमादित्य के बारे में है, जो एक महान योद्धा और न्यायप्रिय शासक थे। कहानी में राजा विक्रमादित्य को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, लेकिन वे हर चुनौती को पार कर लेते हैं। कहानी में राजा विक्रमादित्य के साहस, बुद्धि और न्यायप्रियता का वर्णन किया गया है।
कहानी का निष्कर्ष यह है कि राजा विक्रमादित्य एक महान योद्धा और न्यायप्रिय शासक थे। उन्होंने अपनी प्रजा की रक्षा की और उन्हें न्याय दिलाया। वे एक आदर्श राजा थे, और उनकी कहानी आज भी लोगों को प्रेरित करती है।
सिंहासन बत्तीसी एक लोककथा है, लेकिन यह एक ऐसी कहानी है जो आज भी प्रासंगिक है। यह कहानी हमें सिखाती है कि हमें हमेशा साहसी होना चाहिए, हमें हमेशा बुद्धिमानी से काम करना चाहिए, और हमें हमेशा न्यायप्रिय होना चाहिए।
FAQ’s
Ques: राजा विक्रमादित्य का साम्राज्य कितना बड़ा था?
Ans: राजा विक्रमादित्य का साम्राज्य बहुत विशाल था। उनका शासन न केवल भारतीय उपमहाद्वीप तक सीमित रहता था, बल्कि उसका प्रभाव इरान, इराक, अरब, और मिस्र तक भी फैला हुआ था। उनके नाम से तबके-तबके के लोग उन्हें जानते थे।
Ques: क्या सिंघासन बत्तीसी असली है?
Ans: “सिंहासन बत्तीसी” एक प्रसिद्ध भारतीय लोक कथाओं का संग्रह है। शीर्षक का शाब्दिक अर्थ है “सिंहासन की बत्तीस कहानियाँ”। इसमें राजा भोज को प्राचीन राजा विक्रमादित्य के सिंहासन का मिलता है और उसके चारों ओर घटित चमत्कारिक घटनाएं बताई जाती हैं।
Ques: राजा भोज की कितनी पत्नी थी?
Ans: राजा भोज की अनेक पत्नियों में प्रमुख रानी लिलादेवी (लीलावती) थीं, जोकि उनकी मुख्य रानी थीं। अन्य रानियों में पद्मावती (कुंटाला की राजकुमारी), चंद्रमुखी (अंग की राजकुमारी) और कमला भी शामिल थीं।
Ques: विक्रमादित्य को भारत में सबसे महान न्यायाधीश के रूप में क्यों जाना जाता है?
Ans: विक्रमादित्य को भारत में सबसे महान न्यायाधीश के रूप में जाना जाता है, क्योंकि उन्होंने अपने लोगों को हमेशा सत्य और न्यायपूर्वक न्याय दिया। दोषी व्यक्तियों को भयभीत होकर उनके सामने प्रकट होने से कांपते थे।
Ques: सिंहासन बत्तीसी में कितनी कहानियां हैं?
Ans: “सिंहासन बत्तीसी” में 32 कथाएं होती हैं, जो विक्रमादित्य के विभिन्न गुणों को कथा के रूप में वर्णन करती हैं।
Ques: सिंहासन बत्तीसी के लेखक कौन हैं?
Ans: “सिंहासन बत्तीसी” लेखक के बारे में विभिन्न संस्करणों में विचार है। दक्षिण भारतीय संस्करण पुष्पिका में इसके लेखक का नाम कालीदास बताया गया है। जैन संस्करण में इसके रचयिता का नाम सिद्धसेन दिवाकर और क्षेमंकर मुनि दिया गया है।
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